मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

chhatrasal aalha by m m panday tikamgarh छत्रसाल आल्हा रचनाकार श्री पं. मनमोहन पाण्डे जी टीकमगढ

      छत्रसाल आल्हा रचनाकार श्री पं. मन मोहन पाण्डे जी टीकमगढ             



                                1

विन्ध्यवासनी मिर्जापुर की तिनके चरण कमल सिरनाय। मात शारदा मैहरवाली वीणा वादनि करौ सहाय।। सदा भूमानी रहे दाहिनी सन्मुख आवे गनपति आय। रक्षा करबंे पांच देवता ब्रहमा विष्णु महेश सदाय।। यवनन संे हिन्दुन की रक्षा करवे लये छत्र अवतार। बिना छत्र के खण्ड बुन्देला मिट जातो बन जातो हार।। वीर श्रेष्ठ नृप छत्र साल जू जाहर भये वीर सिरताज। छत्रसाल आल्हा को विरचों गुनिजन गुन के राखौ लाज।। जैसौ सुनो लिखो पोथिन मे तैसोइ वरनन करों सुभाय। ज्ञानी गुनी सुधारौ ई खां भूल चूक मे करौ सहाय।। वीर षिवा राणा प्रताप उर दुर्गादास वीर वलवान। तिनकै संगै छत्रसाल ने रक्खी खण्ड बुन्देला शान।। नये देवता जे भारत के जिनने रखी देष की आन। माथौ नाय प्रनाम करत हो भूल चूक क्षमि हों नादान।। वीर भूमि बुन्देलखंड मे जनमे छत्रसाल वलवान। चंपत राय बुन्देला के सुत जिनखां जानत सकल जहान।। सांसी छत्राणी सांरधा चंपत रा की जीवन प्रान। मोर पहाडी के हारन मे भूक प्यास से व्याकुल प्रान।। 2 मुगल सिपाही पीछौ कर रए चंपतरा ना मानी हार। पत्नी और पुत्र के संगै छाने जंगल हार पहार।। चंपत धिर गये जब मुगलन संे जीते जी ना मानी हार। पति पत्नी ने प्रान खो दये इक दूजे को मार कटार।। माता पिता मानते इनखां वीर सारवाहन अवतार। इनका पहला बेटा था जो बचपन मे गया स्वर्ग सिधार।। महभारत मे ज्यो अभिमन्यू कौरव दल ने दओ संहार। छल से धेर घार कें मारो अभिमन्यू गयों स्वर्ग सिधार।। ऐंसई सारवान चंपत सुत मुगल धेर कें डारो मार। संवत सौरा सौ अडतालिस संवत नाम बिंलवि जहार।। ज्येष्ठ शुक्ल दिन षुक्रवार की तीज तिथि जनमें छतराय। चंपत कहते छत्रसाल जू बने सारवाहन अब आये।। सन सोरा सौ इकसठ मे ही हो गई मात पिता की हान। अग्नि भेंट कर मात पिता को नगर महेबा पहुचे आन।। माताओं को धीर बंधाकर नगर देवगढ चले सुभाय। अगंद अरु गुपाल भाई संग करी तेरही विधिवत जाय।। नही आसरौ मिलो किसी कौ बहिना लये किवाड लगाय। नगर पुरोहित मुगलन के भय जानौं नहीं छत्र को भाय।। 3 बेटी थी इक कुभंकार की भई सहोदरा बहिनी भाय। दओ सहारौ छत्र साल को भाई छत्तै लओ बनाय।। धधक उठी बदले की ज्वाला भवन सैन्य भरती की ठान। रही उमर तेरह वषां की किया पितृगृह को प्रस्थान।। भूख प्यास से व्याकुल पथ मे महाबली लीनौ पहचान। सांसौ सेवक चंपत रा कौ अति विस्वासी वीर महान।। दयौ सहारौ राज कुंवर खां दई निराषा दूर भगाय। युद्ध करौ जाके मुगलन से बदलौ लेव पिता कौ जाय।। थाथी सौपी थी रानी ने जेवर और बछेडा भाय। छत्ता को दई महाबली ने बुरेवक्त में करी सहाय।। चार साल के भये छत्र जब पहुचंे मामा के ढिंग जाये। पले पुसे बारह सालो तक चंपत के गुन रए समाय।। बचपन से ही चित्रकला में पारंगत बालक छतसाल। हाथी धोडा तोप तमंचा चित्र बनाते थे तत्काल।। आगंतुक का वन्दन करते नियम पूर्वक मंदिर जायं। करंे प्रार्थना नारायण की महाभारत की कथा सुनाय।। माता लाड कंुवरि सारंधा पालो लाड प्यार से बाल। नाष करेगा यही शत्रु की नाम धर दओ भात्रुभाल।। 4 फिर से सोच करो माता ने छत्र धरेगा मेरा लाल। शत्रुशल को नाम बदल के टेरन लगी उऐ छतसाल।। सांरधा ने ध्यान मगन हो देखा एक अनोखा हाल। पडा खटोला क्षीर सिन्धु मे ती मे परो बाल छतसाल।। शेष नाग की छाया उपर देख रही माता कर ध्यान। बालक ने किलकारी मारी ब्राजे छत्रसाल बलवान।। भये सभी संस्कार छत्र के चन्द्रकला सम बढत दिखाय। सन सोरा सौ साठ ईस्वी विन्ध्य वासनी पहुंचे जाय।। वर्ष इकादष की उम्मर में हतो यवन सेनापति जाय। दिखे पूत के पाव पालने देख देख माता हर्षाय।। दिलवाडा कौ वासी मोदी महाबली मामा सम भाय। भानुभटट दिलवाड निवासी भयो सहायक छत्ता आय।। दहिने हाथ बने छत्ता के नगर महेबा पोचे आन। चीन भतीजौ लओ चाचा ने छत्तै जानौ पूत समान।। राव सुजान राव चंपत के भाई नगर महेबे मांह। सगे भतीजे छत्र साल ते आदर दै गै हीनी बाय।। पालन पोषण किया पिता सम सिखा युद्ध विधा का ज्ञान। अष्वारोहण लडन भिडन सेना संचालन समुचित ज्ञान।। 5 नगर महेबा मोर पहाडी पंडित राधेलाल गुसाई। ज्येष्ठ षुक्ल रविवार पंचमी संवत सत्रादस अðाइ।। छत्रसाल का झंडा पीला मारुति देवी चित्र बनाय। बने चंद्र और सूर्य ध्वजा मे उज्जवल चरित वंष परिचाय।। दूजौ झंडा केसरिया रंग युद्ध भूमि के आंगूं जाय। एक ध्वजा रै गई बाद मे जी मै चाद सूर्य दरसाय।। युद्ध करन की तिथी षोधकर युद्ध करन को भए तैयार। संगै केवल पाच बछेडा सैनिक जन पचीस सरदार।। बिना बताये धर से निकरे बदले की ले मन मे आग। भरती हुए मुगल सेना मे राजा जयसिह बांधी पाग।। पगडी बदल भाई चंपत कौ खान बहादुर वीर सिपाय। मन मे लज्जा भई छत्र के शत्रुन की सेना बिच आय।। संग मे दाउ चचेरे भाई बडे भाइ थे अंगद राय। धेरा किला पुरन्दर जाकर छोडा किला षिवाजी राय।। संधि हो गई दौनो दल मे हमला बीजापुर पर कीन। रण की नीति षिवाजी की थी मन मे छत्रसाल धर लीन।। कैद हो गए वीर षिवाजी किले आगरे के दरम्यान। छल बल कर के राजनीति से निकले जाय बचाये प्रान।। 6 किला देव गढ गुणवाने का जिसके योद्धा वीर महान। जिनने रक्षा करी किले की कइयक वीर गंवाई जान।। धेरा बन्दी करी किले की रतन शह अंगद के संग। सेना थी कमजोर जहा की छेडी छत्र साल ने जंग।। कूरम मल राजा की सेना छत्र साल ने रोदीं जाय। खान बहादुर ने ललकारा मुगल सैन्य को जमकर आय।। योद्धा कट गये कूूमरमल के छत्र दुर्ग मे किया प्रवेष। लाज बहादुर खा की रखली धुटने टेके वीर नरेष।। मन मे था संताप छत्र के मुगल शत्रु से लीनी रार। नाम बढाया मुगल सैन्य का छत्ता के मन क्षोभ अपार।। कूरममल राजा के सम्मुख सेना मुगल भगी धबराय। वान संभा ली छत्रसाल ने कूरममल को दिया हराय।। टुकडी एक बची दुष्मन की लीनी शरण किले मे जाये। राजपूत सरदार बचा जो हमला किया छत्र पर आय।। धोखे से आया छत्ता ढिंग गर्दन पर था किया प्रहार। कठिन वार था छत्ता उपर गिरे धरनि सह सके न वार।। लोहे का बिछुआ थे पहने गर्दन पडा अधूरावार। धोडा अडा रहा छत्ता ढिंग रिपु ना कर पाया अधिकार।। 7 धायल हो गये छत्रसाल जब निज धोडे ने की सहाय। पहरा देता रहा रातभर दुष्ट सिपाही दये भगाय।। रतन शाह अंगद ने खोजो लई पालकी षिवीर मझांर। लादा छत्ता को पालकी में पहुंचे मउसहनियां द्वार।। भले भाई कह छत्रसाल ने धोडे को दीना सम्मान। बाद मृत्यु के बना समाधी कृतज्ञता का दिया प्रमान।। मिली प्रसंषा छत्रसाल को पर न मिला छत्ता को मान। भेंट मिली ओहदा भी पाया छूंछे रहे छत्र वलवान।। दूर हुआ भ्रम सही राह पर आये युगल भ्रात वलवान। वीर षिवाजी से मिलने की छत्रसाल लई मन मंे ठान।। वीरषिवा का यष फैला था मुगलों को जिन दिया हराय। खटटे दांत किये मुगलांे के औरंगजेब रहा धबराय।। बीच राह में दैलवार की दानकुमारी लीनीं ब्याह। लडकी थी परमार वंष की दक्षिण दिषि की लीनीं राह।। करे पार अवरोध अनेकन पहंुचे जाय षिवाजी पास। लवा युद्ध शौकीन षिवाजी लवा युद्ध से बंध गई आस।। लवा जीत गओ छत्रसाल कौ वीर षिवाजी कौ गओ हार। परिचय पूछा वीर षिवाने छत्रसाल तब दई हुंकार।। 8 सब इतिहास बुन्देल खंड कौ छत्रसाल ने करो बखान। चंपत का बलिदान सुनाया निज इच्छा का दीना ज्ञान।। हर्षित हुए षिवाजी राजे सभी जानते थे इतिहास। कीन प्रषंसा छत्रसाल की दिया मदद का भी विष्वास।। थे निस्वार्थ षिवाजी राजे बोले करो राज्य विस्तार। मदद करेगे धन साधन से दीन भवानी की तलवार।। विदा लई राजे से छत्ता निज स्वराज का मंत्र विचार। मिलंे सहायक तभी सधेगा निज स्वराज का शुद्ध विचार।। किलेदार शुभकर्ण बुन्देला खण्डबुन्देला सूबेदार। मुगल राज्य का रहा सहायक कीना राय सुजान संधार।। चंपतरा उर सांरधा को कर षडयंत्र दिया मरवाय। छत्रसाल का शत्रु बन गया मदद नही कीनी छत्रराय।। छोड दिया शुभ कर्ण धूर्त को आगे मिले चचेरे भ्रात। बलदाउ का संग मिल गया चले ओरछा दोनो भ्रात।। बल दिवान जू शंका मे थे प्रथम गये मुगलो से हार। पहले पत्र लिखे सो पाये पराधीन स्वाधीन प्रचार।। स्वतंत्रता के लिये लडे मिल मिलापत्र फिर किया विचार। सिह सुजान नृपति उरछा ढिंग किया प्रकट अपना सुविचार।। 9 मुगलो के हमले से चिंतित आंषकित थे राव सुजान। दिया वचन उन छत्रसाल को मिल उरछा का राखौ मान।। टूट न पावंे उरछा मंदिर जनता न होवै बेहाल। धन सैना दै वचन ले लिया छत्रसाल को किया निहाल।। नगर ओरछा की रक्षा हित छत्ता धार लई तलवार। वीर बुन्देला मंूछ मरोरें सैवे खां मुगलन कौ वार।। आया सूबेदार फिदाई उरछा मंदिर टोरन काज। ले आया फरमान शाह का गिरा ओरछा पर ज्यो गाज।। किया सामना छत्रसाल ने धक्का खा गए मुगल पठान। दिया खदेड फिदाई खा को राखी छत्रसाल ने आन।। सिह सुजान ओरछा राजा हीरा देवी लये बहकाय। चंपतरा के प्राण पखेरु उडे राव के सामू जाय।। कुल कंलकिनी हीरादेवी की राजा ने कीन सहाय। प्राण गंवाये जब चंपत ने राजा का दुख नही समाय।। किला पुरंदर मरहठठो का जीता कीनी मुगल सहाय। चांदा राज्य जीतने खातिर राजा लडे युद्ध मे जाय।। भेजा जब औरंगजेब ने खान फिदाई कीनी घात। प्रायष्चित करके राजा ने छत्रसाल को दीनौ हाथ।। 10 धूम धाट पर भगा फिदाई छत्रसाल ने दीनी मात। धुर मंगद ने छत्रसाल का दिया युद्ध मे भारी साथ।। राजा राव सुजान सिह ने कीना छत्ता का सम्मान। बाद मृत्यु लधु भ्रात इन्द्रमणी राजा उरछा के भयआन।। चले बिजौरी राजा के दिग राजा रतन शाह के पास। गोल मोल उत्तर दै दीना छत्रसाल की टूटी आस।। तीस सिपाही छत्रसाल पै धोडन के सवार थे तीस। बलदिवान जोधा के दल मे केवल सैनिक थे बाईस।। लूटपाट मे जो कुछ मिलवे उकौ पचपन प्रतिषत भाग। रहै छत्र के पास भाग पैतालिस बल दिवान के पास।। चंपत लाडकुंवरि के हक मे धंधेरो ने कीनी धात। बहनोई बहिनी को छोडा दिया मृत्यु हित दुषमन साथ।। बदला लेने हेतु कुंवर जू छत्रसाल ने धेरा आय। सहरा किला धंधेरो का था कंुवर सेन था रक्षक जाय।। छिपा किले के भीतर जाकर छत्रसाल ने धेरा जाय।। मुगल सैन्य नहि आई मदद को कुंवर सेना दयै हाथ उठाये।। बदला लीना छत्र पिता का लूटी दौलत अपरंवार। वादा किया चैथ देने का दिया छोड तब जागिरदार।। 11 छमा कर दिया छत्रसाल ने गदगद हुआ धंधेरा वीर। ब्याह भतीजी दान कुंवरी को पुत्री साहिब राय धंधीर।ं। साही थाना था सिरोंज का महमद हाषिम थानेदार। भिडा छत्र से आकर हाषिम धडी दोक मैं खाई हार।ं। लूटा टिवरी ग्राम होष से लई चैथ बड गये आगार। भारी बल था छत्रसाल मे जिनकी बडी कठिन तलवार।। जाकर चढे धामनी गढ पे जिसमे हुआ पिता का अंत। हुआ कठिन संग्राम यहा पर मारे गये पिता के हंत।। राजा इंद्रमणी ओरछा का औरंगजेब दिया बहकाये। किया आक्रमण छत्रसाल पर गरजा युद्ध भूमि मे जाये।। छत्रसाल ने इंद्रमणी को भांत अनेकन दओ समझाये। हम तुम दोनो एकई धर के हमै लडाई नही सुहाये।। मानो नही इंद्रमणी राजा कीना छत्रसाल से बैर। किया परास्त छत्र ने उसको भगा दिया तब मानी खैर।। मातामहि गणेष कुंवर ने छत्रसाल से किन्ही भेंट । षान्त हो गया क्रोध छत्र का दिन्ही वीर षात्रुता मेंट।। बडे ग्वालियर ओर जहा पर मुगल तहव्वर सूबेदार। तहबर खा भयभीत हो गया मोहरे छीनी बीस हजार।। 12 आगे बढे भेलसा छीना उज्जैनी को किया पयान। अनवर खा सेनापति आया भिडा संग लै सैन्य महान।। धावा किन्हा अर्धरात्री को मुगल सैन्य ने किया पयान। पकड लिया अनवर सेनापति पाया सवा लाख का दान।। क्रोधित हो औरंगजेब ने अनवर खा को दिया निकाल। वेष्या हंतीन गई शेख संग हो राई छत्रसाल कौ भाल।। बाके पुत्री भई मस्तानी रुप सुन्दरी मात समान। बाजी राव पेषवा के संग रानी बनी सती समआन।। अलीब बहादुर तीकौ सुतभऔ बांदा कौ नबाब सुजान। सन सत्तावन बनो बिरोधी छीन लई जागीर महान।। बांदा से इन्दौर भेज दओ दई पेषंन अगरेजी राज। बांदा मे सन्तान बनी है वर्तमान मे भयो सुराज।। मिर्जा सदरुददीन बहादुर धामौनी का सूबेदार। तीस सहस सेना सेनापति मुगल राज्य का था सरदरा।। दिया संदेषा छत्रसाल को मिर्जा सदरुदीन पठाय। लूट पाट को छोड छाड कर मागौ क्षमा शाह से जाय।। सालाना देव चैथ शाह को वरना रहौ युद्ध को त्यार। उल्टा उत्तर दिया छत्र ने सदरुद्धीन ने खाई खार।। 13 करते थे अभ्यास छत्र जू साथी संग मे केवल खात। थेर लिया सैयद ने छत्ता आत्म समर्पण की नी बात।। दौनो सेना भई सामने पैलां भई छत्र की हार। दिना दूसरे की पारी मे बुन्देलन मैदां लये मार।। तोपे बिखर गई मिर्जा की लोथें पडीं हजार हजार। मिर्जा सदरुद्धीन कैद भये उनने सवालाख दए हार।। कई यक ज्वान बुन्देलन केरे आये इसी युद्ध मे काम। बिखरी पडी खेत मे सम्पति छत्र साल ने लई तमाम।। चित्रकूट तीरथ चल दीना दर्षन कीने कामद नाथ। सगरी सेना संग मे लीनी छत्रसाल तब भये सनाथ।। सूबा सूबेदार हमीदा छत्ता को लीना उन छेक। साधु संत सब व्याकुल हो गये उनने पाये कष्ट अनेक।। छत्रसाल ने करी चढाई हामिद खा को दिया हराय। सवालाख की चैथ वसूली दीना छोड हमीदा राय।। सामग्री भी मिली शत्रु की संगै भयो राज्य विस्तार। आषा बधी यही हिन्दुन को हुइयै मुगलन से उद्धार।। मउसहनिया के हारन मे प्रान नाथ जू भेटे आय। दीक्षा लीनी छत्रसाल ने देषधर्म हित दीन सलाय।। 14 कषी से पंडित बुलवाये विधिवत हुआ राज्य अभिषेक। सन सोला सौ सत्तासी मे छत्र भये महाराज विषेख।। महाराज बन छत्र साल के मन से रहो न तनकउ मान। कविता रच के छत्रसाल ने कीनो ईष्वर को गुणगान।। बढ कर आय गये मैहर मे माधवसिह नाबालिग राज। विधवा रानी संचालक थी नाबालिग पै रक्खौ ताज।। सेना आइ नही लडने को गढ पर सें गोले बरसाय। मरे सिपाही छत्रसाल के अंतिम विजय छत्रभई आय।। गढ के भीतर धंसे छत्र जू माधव सिह लिया बधवाय। संधि करी रानी ने आकर लिया चैथ का वचन कराय।। जीत लिया मैहर छत्ता ने बांसी गढ को किया पयान। दांगी केषवराय वीर था जाहिर जागीरदार महान।। खण्ड बुन्देली स्वतंत्रता हित दांगी चलो हमारे साथ। कथन सुना यह छत्रसाल का दांगी तीनो उंचो माथ।। कुछ अपषब्द कहे दांगी ने छत्ता का कीना उपहास। द्वंद्व युद्ध करने के खातिर छत्रसाल से करो प्रयास।। जरासंध और भीम सरिखे दोनो आये डटे मैदान। दीनी टक्कर छत्रसाल को विवष रहे बुन्देली जवान।। 15 प्रात काल से सांझ हो गई जोष बढा उनमे अधिकाय। छत्रसाल कौ तीर समायो दांगी के वक्ष स्थल जाय।। धायल होकर गिरा धरनि पर छत्रसाल लओ मूड उडाय। दांगी के कुछ सैनिक टूटे दिये बुन्देलन मार भगाय।। केषव राय वीर था लेकिन अभिमानी औगुन की खान। दुखी हृदय से छत्रसाल ने दाह क्रिया करवाई आन।। बेटा विक्रमसिह दांगी को धीर बंधा युवराज बनाय। बात नही की चैथ वसूली विक्रम सैनिक लिया बनाय।। पद प्रधान का दिया पुत्र को कीन्ही दया वीर ने भाय। मान वीरता का रख लीना हर्ष रहा जनता मे छाये।। भये युद्ध मे धायल छत्ता मउ जाकर कीन्हा विश्राम। एक माह तक छोड काम को भली भाति किन्हा आराम।। कम्मर कस लई फिर छत्ता ने चढे ग्वालियर की जागीर। नगर पवाया मे रहता था सुबेदार सैयद खा वीर।। हुआ पराजित मय सेना के छत्रसाल सें मानी हार। लूटा नगर चैथ का वादा लेकर छोडा सूबेदार।। फिर से आया महमद हाषिम था कटिया का थानेदार। लेकर सेन भिडा छत्ता से हुआ पराजित दूजी बार।। 16 हरीसिह ठाकुर दुहिता संग छत्ता किया तीसरा ब्याह। हनु टेक को लूट कूच कर आगे लई मउ की राह।। बडे बडे कुवंर बुंदेला ठाकुर मिल गये छत्रसाल संग आय। धाक वीरता की फैली है चहुं दिषि रही प्रभूता छाय।। सबल सिह, दीवान दीप चंद बुन्देला, संग पृथ्वी राज। जगत, सकत, धंधेर बखतसिह मिले आयके यादव राज।। जाम शाह उर वीर इन्द्रमणि जगत सिह संगै गोपाल। भरत शाह उर अमरसिह जू माधव राय मिले तत्काल।। उग्रसेन और उदयभान सिह वीर बुंदेला बडे जुझार। गाजी सिह, जय सिह, राजसिह, अमीर सिहं करी जुहार।। मिले गुमान, रायमन दौवा स्वागत करे वीर छत्रसाल। अच्छी सेन बनी छत्ता की शत्रु देख के भये विहाल।। किन्तु हाय दुर्भाग्य मिले ना नगर ओरछा के सरदार। पहले धात करी चंपत पै शंका फूट बनी आधार।। दई सूचना दिल्ली पत खां क्रोधित हुआ मुगल सरदार। दीन्ही पठा मुगलई सेना नगर ओरछा के मझदार।। रतन शाह ने आगे बढके दीना छत्रसाल को संग। बढते कदम रुके छत्ता के मुगलन से भई भारी जंग।। 17 रन दूलह उपनाम का रुहिल्ला कौजदार औरंग भिजाय। बसिया के ढिंग छत्रसाल ने अभिमानी को दिया हराय।। धामौनी का फौजदार था सेना सहित भगा सरदार। बडी सेन पुनि लेकर आया धामौनी पर किया प्रहार।। हुआ युद्ध धनधोर सेन बिच सागर के मैदान मंझार। टिकी न रनदूलह की सेना खाली गया दूसरा वार।। फौजदार रनदूला के संग मिल गये विद्रोही सरदार। सैनिक तीस हजार साथ मे छत्ता संग रच लीनी रार।। रहा तोप खाना छत्ता संग गोलन्दाज कुषल ठहराय। छत्र साल संग प्रजा मिल गई उसका मिला सहारा भाय।। अपनी अपनी सेना लेकर साथ बहत्तर थे सरदार। मुगलो से लोहा लेने को हाथ मीडकर थे तैयार।। रहे कुषल जासूस साथ मे प्रजा वर्ग ने करी सहाय। जंग जीतने का साहस था तन मन मे था बल अधिकाय।। गढकोटा का कित्ना जहा पर मुगल शासको का अधिकार। थोडी सेना रही शत्रु की छत्ता सेन दई संहार।। आई तभी मुगलिया सेना रण दूलह जाकौ सरदार। हुई पराजित बुरी तरह से सह न सकी तोपो की मार।। 18 गढ से गोला चले भयानक पाछे से छत्ता की मार। भागे चली मुगलों की सेना फैला यष छत्ता सरदार।। पीछा करके रणदूलह का लूट लये मुगलन के गांव। लूट खजाना नरवर गढ का छत्ता धरे जमाकंे पाव।। खबर मिली औरंगजेब को बक्का खां भेजा तत्काल। तुर्की सेना ने बसिया ढिंग फेंको छत्रसाल पर जाल।। छत्रसाल के एक वीर ने तुर्क तोपखाना दओ बार। किया आक्रमण छत्रसाल ने सेना मुगल धरे हथियार।। विजय प्राप्त कर छत्रसाल जू जिगंनी गांव पधारे आय। जगिरदार पडिहार सुता भगवान कुंवरि को ब्याहो जाय।। ब्याह कराने सडवा वाजने आयो वीर सजा बारात। सेना के दो भाग कर दये थोडी सेना लीनी साथ।। हुई फिकर औरंगजेब को तहवर खां को भेजा फेर। भांवर पडते वक्त मुगल ने लीना छत्रसाल को धेर।। हुआ विकट संग्राम तहव्वर सह न सका छत्ता की मार। छिन्न भिन्न सब सेना हो गई तहबर खां की हो गई हार।। बेवस होकर दिल्ली पहंुचा दुखी हो गया आलमगीर। मउसहानिया पहंुचे छत्ता विजया दषमी मनी अखीर।। 19 चार माह बरसाती काटे महलन भयो विनोद प्रमोद। कालिंजर की फतह करन को चले वीर मन में भरमोद।। करम इलाही किलेदार था संगै रही मुगालिया फौज। बल दीवान वीर ने धेरा कालिंजर मन में भर औज।। दिना अठारह गोला बाजे बहुतक चली वहां बन्दूक। मरे सिपाही बल दिवान के फिर भी भई न तनकउ चूक।। रसद खत्म हो गई किले की सैनिक निकरे प्रान बचाय। युद्ध हुआ धमसान परस्पर कालिंजर गढ धुसे अधाय।। कितनउ वीर मरे कालिंजर बहुतक भई सेना की हान। नंदन छीपी कृपाराय उर बाधराज ने दीने प्रान।। सेना के सत्ताइस योद्धा धायल भये किले दरम्यान। चैबे मान्धाता को कीना किलेदार खुद बलदीवान।। कांलिजर से मउ को आये दक्षिण दिषा किया प्रस्थान। गढ मंडला सागर को लूटा फिर दमोह कीना अस्थान।। विरहिन लूट डोलची लूटी नरसिंहगढ की राखी लाज। किला हिनौती पडा बीच मे छत्ता जीत मिलाये राज।। एरच फिर जलालपुर जीता फिर आगे को किया पयान। पार करलई नदी वेतवा भिडे वहां पर मुगल पठान।। 20 हुई परास्त मुगलिया सेना कैद हो गया अबुललतीफ। धन्धेरे हमीर से मिलकर पाये प्रान कोटरा चीफ।। जाट धटी मे डेरा डाला फिर से सैयद मुगल लतीफ। फिर से खाई मात छत्र से भाग गया दक्षिण को क्लीव। सौ अरबी धोडांे को छीना तेरह तोपंे सत्तर ऊंट। आत्म समर्पण किया क्षमा कर चैथ लई फिर दैदई छूट।। फिर से धात करी दुष्मन ने छत्रसाल दीना संहार। जेठे पुत्र पदमसिह जू को दिया कोटरा का अधिकार।। बांदा की जनता ने मिलकर कीना छत्रसाल सम्मान। पे्रम भाव से छत्रसाल ने उनको दिया अभय का दान।। जागिर दार गांव सताइस लडने की जिनखौं थी चाह। भये सामने छत्र साल के हुए पराजित लुटे कराह।। सीमाये बढ गई वीर की भारी हुआ क्षेत्र विस्तार। मगर मुगालिया साम्राज्य की सेना संख्या अपरंपार।। शक्ति क्षीण कर दई छत्र की धीरज की सीमा रई टूट। डूब रहा मुगलों का सूरज हार दई आपस की फूट।। लिखा पत्र औरंगजेब को क्षमा मांग ली थी छतसाल। करने हेतु दमन दक्षिण का चला वीर मन मे बेहाल।। 21 खान जहां सेनापति के संग छत्रसाल गये दक्षिण पार। पंच हजारी मनसब पाया साढे चार सौ धोड सवार।। फिरी दुहाई अलमगीर की सत्ता चढी षिखर पर जाय। छत्रसाल निज राज्य बनाओ पक्कौ शासन मुगल हटाय।। छोडे मुगल लूट जनता की जनता अमन चमन से राय। मन्दिर मूर्ती टूट न पावे सन्धि करि मुगलन से जाय।। दो चेहरे औंरगजेब के छत्रसाल ने लये पहचान। बाहर से सादा सूफी था भीतर से कन्जूस महान।। सम्पत छीन लई बहना की मागी जवहरात सौगात। षाहजहा ने मतलब समझा जौ करहै बहना से धात।। षाहजहा की मौत की खातिर जहर मिली औषधी बनवाय। नाबालीक पुत्री दारा की सम्पति छीन लई बहलाय।। मित्र मीर जुमला के सुत की छीनी दौलत खाई खार। सत्तर लाख रुपै चादी के सोने के पैतीस हजार।। महमद सइद मीर जुमला ने लूटपाट दक्षिण मे कीन। बाइस मन हीरे लै आया संगै मूर्ति स्वर्ण लई छीन।। अष्टधातु सोने की प्रतिमा जुमलामीर दई गलवाय। नालै बना लई तोपन की अत्याचार रहो जग छाय।। 22 धूम धाम से राज तिलक भओ छत्रसाल जू भये महराज। फिरी दुहाई देसन देसन धन्य बुन्देलन के सरताज।। सोरा सौ नब्बे इस्वी मंे औरंगजेब पठाई सैन। तीस सहस सेना को लेकर अब्दुल समद तरेरे नैन।। मौधा के मैदान मध्य में साभू भये समद छतसाल। षुक्ल चैत पंचमी तिथि मे समर हुआ दिन प्रातःकाल।। मध्य भाग में छत्रसाल थे भाग दाहिने बलदीबान। बायें भाग रायमन दडवा छिडी जंग दोइ दल दरम्यान।। पहले युद्ध हुआ तोपों से फिर हो गई तोपें बेकाम। चली कटारें उर तरवारें कहते लडते हो गई शाम।। खेत रहे सरदार दोउ दल फिर गये छत्रसाल भये जाम।। मदद करी बुन्देली सेना छत्ता जीत कमाये नाम।। सन सोरा सौ अस्सी मे शादीपुर निकट बेतवा पार। चूर हुआ मद अबुल समद का पैदल भगा मान कर हार।। बन्दी बना लिया छत्ता ने लई चैथ दओ छोड पठान। धाव बहुत आये छत्ता के हार करारी औरंग मान।। हमला किया सुहावल जाकर राजा था गजसिंह सरदार। हुई लडाई चार दिना लौ गजसिंह डार दये हथयार।। 23 चैथ वसूली करी छत्र ने गंगा सिंह ने मानी हार। आगे बढे भेलसा आये बहलुल खां था सूबेदार।। कुषल बहादुर सेना पति था उच्च वंष का मनसबदार। सेना दई विषाल साथ में दिया तोपखाना अधिकार।। कई भाग सेना के कीन्हे केन नदी पर पहुंची जाय। करी चढाई पन्ना पर तब किला राजगढ किल्लेदार।। रोक लेंव छता की सेना बहलुल खां ने किया विचार। किला राजगढ ध्वस्त करुं फिर पन्ना जाय करुं अधिकार।। भेष बदल लओ छत्रसाल को किया सामना सैनिक जाय। देख सामने छत्रसाल को बहलुलखान गया धबराय।। संदेषा दक्षिण को भेजा छत्र राजगढ पहुचे आय। धेर लिया बहलुलखान को हुआ समर दोनो दल आये।। पांच दिना तक युद्ध चला तब काटे छत्ता चुने जबान। धामौनी के निकट युद्ध मे काटा सिर बहलोल पठान।। धामौनी से आ पहुचे मउं रहे कछुक दिन मउ मंझार। इसी बीच सेना ने कीना नगर कोटरा पर अधिकार।। छोटे मोटे राज्य बचे जो सह न सके छत्ता की मार। किया समर्पण राजाओं ने छत्ता की भई जैजैकार।। 24 किया आक्रमण सेहंुडे जाकर खां दलेल था जागिरदार। पगडी बदली चंपतरा संे मांगी मदद न दीनी यार।। कैसे तुमरे भाई चंपत जिनके पुत्र मचाई रार। हुई लडाई बल दिवान ने कीना सिहुंडा पर अधिकार।। ज्ञात नही था पिता मीत था भारी चूक हुई है भाय। छत्रसाल को चिठठी द्वारा पिछली याद कराई जाय।। लौटाई जागीर छत्र ने कीन्ही भरपाई जाय तत्काल। लाज रह गई खां दलेल की विफल हुई औरंगी चाल।। फैल गयो यष छत्रसाल को मिला पुण्य का फल तत्काल। भई निराषा षांहषाह को जानो छत्रसाल ज्यों काल।। राजनीति का मंत्र यही था मिले राज्य मे जो जांगीर प्रजा सुखी हो जाय उतै की करते यही षिवाजी वीर।। हिन्दु मुस्लिम लडे परस्पर मरे बंद गढ के दरम्यान। नही मिली जब मदद कही से जूझ गये सब मूर्ख महान।। छत्र साल जू की सेना मे दउआ रायमन वीर महान। गोली लगी वीर दउआ के छत्ता गरजे सिह समान।। नष्ट भ्रष्ट करडारी सेना सोरह सौ मुद्रा लई पाय। छोड दये उन सारे कैदी जो अत्याचारी कहलाय।। 25 अस्मद की सूबेदारी थी धामौनी मे शाह सहाय। पकडा गया पहाडी मे फिर दैके चैथ रिहाई पाय।। हुआ यही परिणाम युद्ध का सभी हुए राजा के संग। नही हुई फिर कोई लडाई मुगलो की सेना भई तंग।। हटा दिया अस्मद को पद से षाहकुली भओ सूबेदार। सच्चा सैनिक वीर सिपाही विषय भोग से दूर जहार।। मुगल सिपाही हुए विलासी सब रहते थे धनी समान। सस्ती बिकती सभी वस्तुऐ सेना के बजार दरम्यान।। पहले सुधरा षाहकुली खा फिर सेना मे किया सुधार। चुस्त दुरुस्त हुई सब सेना तब धावा को भओ तैयार।। इधर बुन्देले अभिमानी भए समझे अरि को मसक समान। षाहकुली ने किया पराजित चूर्ण हुआ उनका अभिमान।। चैराहट कुटरा जलालपुर आदि नगर हथियाए ज्वान। हारे बलदिवान मैदा मे बुन्देलो की धट गई शान।। छत्रसाल ने धीरज धर के फूक दये मुर्दन मे प्रान। भरे जोष मे फिर बुन्देले जेल गये मुगलो के बान।। षाहकुलीन वंष तूरानी हैदरबाद निजाम कहाय। सन सोरासौ तेरासी मे मउसहानिया करि चढाय।। 26 सेन बडी लेकर आया था छत्ता को टक्कर दई आय। मारे गये पाच सौ सैनिक षाहकुली खा से टकराय।। छापा मार युद्ध से छत्ता षाहकुली को दीन हराय। कैद हो गया षाहकुली खा चैथ चुका कर छुटटी पाय।। बार दूसरी अस्मद आया षाहकुली ने किन सहाय। अस्मद कैद हुआ छत्ता ढिगं दिल्ली षाहकुली गओ भाय।। बार तीसरी नन्दराम संग चढा आठसौ लयै सवार। हुआ युद्ध नौगाव छावनी कैद भयो गयो स्वर्ग सिधार।। अंतिम युद्ध हुआ मुगलो से छत्रसाल से ध्यान हटाये। आलमगीर गया दक्षिण को सेनापति का रूप सुभाय।। पीछा छूटा मुगलषाह से खत्म हुआ मुगलई आंतक। मृत्यू हुई औरंगजेब की मरहट्ठो की भई बढंत।। कुछ ही भाग जीत पाया था असफल हुआ दकन मे जाय। दूर हुआ भय अब दिल्ली का छत्रसाल सोये सुख पाय।। स्वतंत्रता को डंका बज गओ छत्रसाल स्वाधीन कहाय। बीजा पुर के इक पठान से युद्ध हुआ जीते छतराय।। धामौनी का फौजदार था खालिक खान मुगल सरदार। धामौनी वा उसका जंगल चाहा कीन छत्र अधिकार।। 27 धामौनी वा हथियारो पर हमला किया एक ही बार। षास्त्रागार पाओ छत्ता ने धामौनी मे भइ तकरार।। कठिन लडाई छत्रसाल की भागा खालिक खा सरदार। सन सोरासौ बासठ सालै चैथ दई भागो सरदार।। सैयद खानजहा का बेटा नाम मुनव्वर खा कहलाय। फौजदार था ग्वालियर का धमूघाट पर रार बढाय।। त्राहि त्राहि मच गई सेना मे चमकी छत्ता की तलवार। मुगल खजाने की जा लूटा जंग बहादुर खागओ हार।। खान दिलावर फौजदार था धामौनी का सिपह सलार। कांलिजर की विजय सुनी तब छत्ता पर तानी तलवार।। साथ तोपखाना था जिसके छीन छत्र ने किया प्रहार। प्राण बचा कर भागा हाथी धोडे तोप मिले हाथियार।। जनता दबी रहै मुगलो से जमुना तट के उत्तर भाग। आया खाँ दाराब लडन हित छत्रसाल मन जागी आग।। मातृभूमि के लिए समर्पित महिलाओ के भए विचार। नही चूडियाँ पहनेगे हम हो षहीद पति चलते रार।। सन सोरा सौ अठहत्तर मे गुप्तचरो ने खबर बताय। छत्रसाल ने मार काट कर षत्रु सेन को दिया मिटाय।। 28 आया दुष्ट तोडने मंदिर बन्दी कीन वीर छतसाल। ना आउ बुन्देलखण्ड मे दिया वचन छोडे छतसाल।। धामौनी का दुर्ग जीतने शहंषाह रूमी पठवाय। जाय खदेडा छत्रसाल ने अफ्रसियाब भागा धबडाय।। वीर षिवाजी की छाया मे छत्रसाल कई सीख अनेक। थोडे से सैनिक लेकर भी लिया छत्रसेना को छेक।। धोडो की टापो को सुनकर समझ गये दुष्मन की चाल। गली सांकरी से रूमी को धेरा कैद किया छत्रसाल।। बाकी सेना अनजानी थी किया आक्रमण दुर्बल जान। गाजरमूली जैसे काटे सेना नष्ट हुई अनजान।। ईराकी धोडो की छीना रूमी भगा बचा कर प्राण। तोपे छीन लई रूमी की लूट लई सम्पत बलवान।। सगा भतीजा था दिलेरखा खामुराद सेहुआ सरदार। सुनी पराजय जब चाचा की चढ बैठा बादा के हार।। चाल समझ के खामुराद की छत्ता वीर दबोचा जाय। गाव पहाडी बादा के ढिगं लिया युद्ध मे कैद कराय।। क्षमा माग कर छत्रसाल से चैथ दीन तब छूटा जाय। मैनेजर नायब दलेल का फिर से लड गओ स्वर्ग सिधाय।। 29 धामौनी का सेना नायक खाइखलाख बडा होषियार। गढकोटा पर युद्ध हो रहा मदद हेतु पहुचा सरदार ।। युद्ध भूमि मै ही पाजी का छत्र कर दिया बेडापार। जीत न पाए मुगल सिपाही बडी कठिन छत्ता तलवार।। खान बसालत फौजदार था पनवाडी का अति बलवान। षाहजहा ने मउ हथियाने हेतु चलाया था अभियान।। ज्ञात हो गया छत्रसाल को धावा पनवाडी पर बोल । मुगल खजाना लूट पाट कर खानबसारत कीना गोल।। सन सोरा सौ तेरासी अफजल धेर लिया छत्ता का आय । रमतूला बज उठा युद्ध का सैनिक भिडे परस्पर जाय।। मुगल रक्त से धरा रंग गई हुआ पराजित अफजलखान। प्यासा ही मर गया युद्ध मे सारा खेत बना षमषान।। सेनपति विख्यात मुगालिया अनवर खैरागढ मे राय। अस्त व्यस्त थी सेन मुगालिया सेनापति बन धमका आय।। सधी सधाई सेन छत्र की सेन मुगालिया दई हराय। बंदी अनवर हुआ चैथ दे छूटा छत्ता बुरी बलाय।। सैनिक सिपह सलार मुगालिया खाषमषेर जंग कहलाय। कई युद्धो मे हुआ पराजित प्राण बचाकर भागा जाय।। 30 नरसिहगढ गौधा जलालपुर कोटा गढा रामगढ छान । खा षमषेर मटोध आदि मे लडा छत्र से हारी मान।। छत्रसाल के रौदन के हित संगै लिए बहुत सरदार। नाम शेरखा सेनापति था आया खण्ड बुन्देल मंझार।। पनवारी मे मैदानन मे मुगल मोर्चा लिया लगाय। छत्र साल ने अपनी सेना मउ सहनिया लई सजाय।। जोष भरा था बुन्देलन मे लपके भूखे शेर समान । षीत काल का कुहरा छाया टूटी कम्मर हारे ज्वान।। हुआ मृत्यु को प्राप्त षेरखा यधपि अफगन कीन सहाय। सूरज चमक रहा छत्ता का टिकता कौन रहा भरमाय।। सन सोरा सौ तेरासी मे अफगन षेर खान सरदार। भागा था मटोध के हारन छत्रसाल से खाकर मार।। संग मे लिये विषाल वाहनी मउ सहनिया डेरा डार। मिली सूचना यह उसको थी छत्रसाल ना मउ मंझार।। दिव्य अस्त्र था मिला छत्र को नारायाणी थी सेन बुन्देल। तिदुनी दरबाजे पर आया छत्ता बार सका नहि झेल।। दई चैथ सौगंध खबाई तब अफगन को छोडा जाय। रहा वचन का कच्चा अफगन हृदय नगर तब मारा जाय।। 31 था नामी बुन्देलखण्ड मे खानजहां षाही सरदार। मिलकर इन्द्रमणि उसने गुलषनबाद करी तकरार।। हार गया था छत्रसाल से मलखेडा मे फिर भई हार। अवतारी थे छत्रसाल जू सह न सको छत्ता की मार।। नदी बेतवा के तट पर था हमला बोला खान जलाल। सोच रहा था छत्र संगठन है कमजोर सुना था हाल।। भिडे बुन्देले मुगल सेन पर धाये भूखे षेर समान। कैदी होकर चैथ चुकाई ज्यो खरगोष भगा ले प्रान।। सन सोरा सौ इकहत्तर से तैतीस साल भई धमसान। वृद्ध हो गये छत्रसाल जू अलमगीर के निकरे प्रान।। दो करोड थी आय छत्रकी पुत्र जन्म बहु खर्चा कीन। सुनते विनय प्रजा की निसदिग धर्म धुरंधर काव्य प्रवीन।। प्रजा मानती पिता छत्र को राज उन खां पुत्र समान। राखे दया दृष्टि विप्रन पर उनकौ करते माफ लगान।। पडो अकाल बुन्देल खण्ड मे करी मदद परजा की जाय। दो करोड की रकम अमानत मानी परजै दई खवाय।। दिल्ली से कवि जी इक आये मुद्रा दो करोड संग लाय। पति पत्नी थे बिन संतति के आय बसे पन्ना मे जाय।। 32 छत्र साल को रकम सोप दई रकम खजाने दइ पहुचाय। ओई रकम नृप छत्र साल ने निर्धन प्रजादई बटवाय ।। छत्रसाल कौ रुप निरखि के कवि की विधवा गई लुभाय। हमे तुमई सौ बेटा चाने हमरौ संग करौ तुम आय।। वीर छत्र ने उके स्तन अपने मो मै लये लगाय। सांसौ पूत तुमारौ हो मै सुन के कामिनि गई लजाय।। राज काज कौ हाल जानबे बदले वेष रात महाराज । चोर उचकन पतौ लगाबे देवे दण्ड सुधारे राज।। छत्रसाल उर महाबली की जोडी रही देष विख्यात। काका काका कहते उनको नही समझते उनको दास।। राजकाज करबे बुन्देले लेते छत्र बली को नाम। उनके काज सिद्ध हो जाते सबई करत उनखौ परनाम।। कोई कवी साधु सन्यासी आया छत्रसाल दरबार। दोई हातन से दान देत ते सासे मन कीने साकार।। मुगलो के थे प्रबल विरोधी कवि भूषण जिनका उपनाम। जन्मे कानपूर तिकुआपुर सुर हस्तर सन बहतर नाम।। कविता पढी छत्र दरबारै लाख रुपैया दीनै दान। लगे पालकी मे कवि जू की फैल गयो यष जग दरम्यान।। 33 मानी आज्ञा लाल कवी की नगर छत्रपुर दीन बसाय। छत्र प्रकाष लाल कवि रच के छत्रसाल दये अमर बनाय।। छिन्न भिन्न साम्राज्य हो गया उभरे बडे बडे महराज। सासं लई सुख की छत्ता ने खण्ड बुन्देला भयो सुराज।। बादषाह बन गये बहादुर षाह जफर दिल्ली दरम्यान। छत्रसाल का हुआ बुलावा षाह जफर किन्हा सम्मान।। भेजा छत्रसाल को लडने लोहा गढ उन छेका जाय। लोहागढ का सबल विरोधी दिल्लीपति का षत्रु कहाय।। बडे बडे मुगलइ सेनापति हारे भई प्रानन की हान। अच्छे अच्छे वीर हार गये धटा नही उसका अभिमान।। जागिरदार विरागी गढ का कीन्हो गढ कौ बहुत सुधार। खाई खुदी गेर कें गढ मे तीमे मगरन की मगरार।। युक्ति विचारी छत्रसाल ने वीर षिवा सी उक्ति बनाय। बडे बडे नगडा रमतूला तुरही बजी किले डिंग आय।। गधा पच्चीसक लये छत्ता ने उनमे बांध लये हाथियार। खेल तमासे संगै लैके रुप गधेरन को लओ धार।। पहरे दारन से गिगिया के बोले बुन्देला सरदार। नरियल चढा पौरिया बाबा ले बारात लौट धर जाय।। 34 पहरेदार खोल दरवाजा बरातियन से बोले जाय। जल्दी जल्दी चढा नारियल ले बारात तुरतई धर जाओ।। बने बराती वीर षिवाजी षाइस्ता को धेरो जाय। छत्रसाल भी बने बाराती धोखा दै गढ पहुचे जाय।। तीस हजार विरोधी सैनिक आये लोहागढ मे काम। विजय मिली सम्पत भी लूटी छत्रसाल को हो गयौ नाम।। भये पुरस्कृत गुणी कवीजन राजा छत्रसाल के राज। गुण ग्राहक कवि छत्रसाल जू जुडता अदभुत कवी समाज।। चिडते थे औंरगजेब से मुगलो से भारी छत्रसाल। भूषण लाल आदि कवियो को दीन्हे दान मान अरु शाल।। छत्रसाल के राज्य की सीमा 35 पँाच नरियल चढे वहा पर पहरेदारन दओ परसाद। सबई भये बेहाल पहरुआ खालओ बेहोषी परसाद।। कछु सिपाही नाच गान मे मगन भये तब निकरे ज्वान। तनक सिपाही ते गढिया मे कर धर को काम कर रहे ज्वान।। हमला कर दओ छत्रसाल ने सबरी कटै कढी के ज्वान। फाटक लगा दओ किल्ले को फत्ते लोहागढ भई आन।। षाहबहादुर जफर षाह ने ओहदा दे किन्हो सम्मान। लिया नही पद छत्रसाल ने खोया नही निजी सम्मान।। सत्रह सौ छब्बीस ईस्वी फार्रुख षाह मोहम्मद खान। बंगस चढा जैतपुर उपर जगतराज को राजा जान।। धायल हुए युद्ध मे राजा रानी ले लई युद्ध कमान। अमर कुंवरि रानी ने बडकर ललकारा दुषमन बलवान।। बडा हौसला बुन्देलो का सैन नबावी छोडी आन। जय जयकार हुई रानी की दुषमन भागा लेकर प्रान।। फिर से चढा जैतपुर गढ पर संगै था दल्लैल पठान। साहस छूटा बुन्देलो का नगर जैतपुर मे भई हान।। कब्जा किया जैतपुर गढ पर भितर धुसे मुगलिया ज्वान। छत्रसाल अब बृद्ध हुए थे शक्तिहीन अपने को जान।। 36 भेज दिया संदेष पेषवा बाजीराव मराठा आन। सेना लेकर चढा पेषवा नगर जैतपुर के दरम्यान।। महल जैतपुर के अन्दर ही धेर लिया बंगस बलवान। दिना दोक तक डेरा डाला रसद चुकी महललन मे आन।। देख लडाई मरहट्ठन की धबराया बंगस नब्बाव। हाथ उठादयै संधि करन को झेल सका न उनका ताव।। करों नही हमला दोबारा दिया वचन बंगस ने फेर। हर्षित होकर छत्रसाल ने किन्हा मान मरठन केर।। ब्याह गई पुत्री मस्तानी भाग तिसरा गयो दहेज। झांसी सागर बांदा कोटा उर दमोह को दिया सहेज।। मस्तानी से पुत्र हुआ एक अली बहादुर जिसका नाम। बांदा का नब्बाव बन गया आठ बार था षाही काम।। पन्ना बीच तला धुव्र सागर जीपर करै छत्र जू सैर। मिला संदेषा प्रान नाथ का छत्ता मांगी गुरु की खैर।। जोड लिये सारे मंत्री गढ पुत्र जुर गये सहित समाज। चैकी मोतीबाग छत्रजू बैठक लई राज के काज ।। राजनीति के मंत्र बताये पुत्रन को दीन्हे उपदेष। षिक्षा की अरुधर्म नीति की सब मे इकता रहे विषेष।। 37 चैकी पर जामा धर राजा नगर छोड वन कीन्ह पयान। गुरु आज्ञा धर लई सीस पर दक्षिण गये न कोउ जान।। वर्ष सतासी की आवर्दा कीनौ देवलोक प्रस्थान। जामा रखा जहा चैकी पर उनकी बनी समाधी जान।। सत्रा सहस अठासी सम्वत जेठ बधी तीजै बुधवार। बारह मई सत्रह ईकतिस सन छत्ता गयै परलोक सिधार।। पुत्र जमना दखिन नर्मदा चम्बल टोन्स पूर्व पछियाए। छत्रसाल को राज बढ गयो शानी नही दुसरी आय।। छत्ता तोरे राज मे धक धक धरती होय। जहं जहं धोडा पग धरे तहं तहं हीरा होय।। सुदृढ राज्य करवे की खातिर छत्ता कीन अनेकन ब्याह। उन्निस रानी भई राजा के मुसरो वेष्या वीसई आह।। अरसठ पत्रु भये राजा के जिनमे चार भये प्रसिद्ध। जगत भारती हृदय षाह को यष जग भयो विषेष प्रसिद्ध।। भाई भाई प्रेम नही था बडी फूट भइयन के बीच। टुकडे भये राज के सूखी प्रेम बेल भई कीच।। जेठी रानी देवकुवंरि के जन्मे बेटा हिरदे षाह। जन्मोत्सव पर धूम धाम से खर्च हुआ था सोलह लाख।। 38 पुत्र जन्म के बितै साल कछु रानी गई परलोक सिधार। लाड प्यार से पला छत्ता रण कौषल संग दीन्हा प्यार।। पन्ना के युवराज बने तब मझंली माता नही सुहाय। पन्ना छोड जीत रीवा को बसे नगर रीवा मे जाय।। छत्रसाल की आज्ञा पाकर रीवा तज पन्ना को आय। विजयी खंभ बना रीवा मे बुन्देली दरवाजा आय।। तीन हजार सिपाही संग मे बल विक्रम हनुमान समान। पहले सैनिक भोजन करते राजा करते भोजन आन।। छत्रसाल बनवास करै पै रहै वर्ष तक छै तक महराज। सौपा राज्य सभासिंह बेटै बीत राग भयै हिरदेराज।। छती पहुचाई धर्म सनातन मंदिर सिगरे दयै गिराय। चार पीढिया बुन्देलन की पीडित भई महादुख पाय।। बदलो लीनौ छत्रसाल ने तहस नहस कर डारो राज। फिरी दुहाइ छत्रसाल की धन धन छत्रसाल महराज।। सवालाख मुगलन की सेना मुठठी भर थे छत्रजवान। धीरज साहस पाय कुषलता भारी युद्ध किया बलवान।। निज साहस बल और बुद्धि से छत्ता जोडा सैन्य समाज। खटटे दात करै मुगलन के कायम किया बुन्देला राज।। 39 देख वीरता छत्रसाल की फैला वीरो मे उत्साह । मुगल दासता से स्वतंत्र हो यही सभी के मन मे चाह।। सीख लीन अलाउदल से किया महाभारत का ध्यान। करि वीरता अदभूत रन मे धन धन छत्रसाल बलवान।। चरित सिन्धु छत्ता का व्यापक जिसमे तैरे कवी महान । मै अबोध नादां गुनहीना करियौ क्षमा सबई गुन वान।। समाप्त BY M.M. PANDAY TIKAMGARH [M.P.]M M PANDAY TIKAMGARH

chhatrasal aalha by m m panday tikamgarh छत्रसाल आल्हा रचनाकार श्री पं. मनमोहन पाण्डे जी टीकमगढ

      छत्रसाल आल्हा रचनाकार श्री पं. मन मोहन पाण्डे जी टीकमगढ             



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विन्ध्यवासनी मिर्जापुर की तिनके चरण कमल सिरनाय। मात शारदा मैहरवाली वीणा वादनि करौ सहाय।। सदा भूमानी रहे दाहिनी सन्मुख आवे गनपति आय। रक्षा करबंे पांच देवता ब्रहमा विष्णु महेश सदाय।। यवनन संे हिन्दुन की रक्षा करवे लये छत्र अवतार। बिना छत्र के खण्ड बुन्देला मिट जातो बन जातो हार।। वीर श्रेष्ठ नृप छत्र साल जू जाहर भये वीर सिरताज। छत्रसाल आल्हा को विरचों गुनिजन गुन के राखौ लाज।। जैसौ सुनो लिखो पोथिन मे तैसोइ वरनन करों सुभाय। ज्ञानी गुनी सुधारौ ई खां भूल चूक मे करौ सहाय।। वीर षिवा राणा प्रताप उर दुर्गादास वीर वलवान। तिनकै संगै छत्रसाल ने रक्खी खण्ड बुन्देला शान।। नये देवता जे भारत के जिनने रखी देष की आन। माथौ नाय प्रनाम करत हो भूल चूक क्षमि हों नादान।। वीर भूमि बुन्देलखंड मे जनमे छत्रसाल वलवान। चंपत राय बुन्देला के सुत जिनखां जानत सकल जहान।। सांसी छत्राणी सांरधा चंपत रा की जीवन प्रान। मोर पहाडी के हारन मे भूक प्यास से व्याकुल प्रान।। 2 मुगल सिपाही पीछौ कर रए चंपतरा ना मानी हार। पत्नी और पुत्र के संगै छाने जंगल हार पहार।। चंपत धिर गये जब मुगलन संे जीते जी ना मानी हार। पति पत्नी ने प्रान खो दये इक दूजे को मार कटार।। माता पिता मानते इनखां वीर सारवाहन अवतार। इनका पहला बेटा था जो बचपन मे गया स्वर्ग सिधार।। महभारत मे ज्यो अभिमन्यू कौरव दल ने दओ संहार। छल से धेर घार कें मारो अभिमन्यू गयों स्वर्ग सिधार।। ऐंसई सारवान चंपत सुत मुगल धेर कें डारो मार। संवत सौरा सौ अडतालिस संवत नाम बिंलवि जहार।। ज्येष्ठ शुक्ल दिन षुक्रवार की तीज तिथि जनमें छतराय। चंपत कहते छत्रसाल जू बने सारवाहन अब आये।। सन सोरा सौ इकसठ मे ही हो गई मात पिता की हान। अग्नि भेंट कर मात पिता को नगर महेबा पहुचे आन।। माताओं को धीर बंधाकर नगर देवगढ चले सुभाय। अगंद अरु गुपाल भाई संग करी तेरही विधिवत जाय।। नही आसरौ मिलो किसी कौ बहिना लये किवाड लगाय। नगर पुरोहित मुगलन के भय जानौं नहीं छत्र को भाय।। 3 बेटी थी इक कुभंकार की भई सहोदरा बहिनी भाय। दओ सहारौ छत्र साल को भाई छत्तै लओ बनाय।। धधक उठी बदले की ज्वाला भवन सैन्य भरती की ठान। रही उमर तेरह वषां की किया पितृगृह को प्रस्थान।। भूख प्यास से व्याकुल पथ मे महाबली लीनौ पहचान। सांसौ सेवक चंपत रा कौ अति विस्वासी वीर महान।। दयौ सहारौ राज कुंवर खां दई निराषा दूर भगाय। युद्ध करौ जाके मुगलन से बदलौ लेव पिता कौ जाय।। थाथी सौपी थी रानी ने जेवर और बछेडा भाय। छत्ता को दई महाबली ने बुरेवक्त में करी सहाय।। चार साल के भये छत्र जब पहुचंे मामा के ढिंग जाये। पले पुसे बारह सालो तक चंपत के गुन रए समाय।। बचपन से ही चित्रकला में पारंगत बालक छतसाल। हाथी धोडा तोप तमंचा चित्र बनाते थे तत्काल।। आगंतुक का वन्दन करते नियम पूर्वक मंदिर जायं। करंे प्रार्थना नारायण की महाभारत की कथा सुनाय।। माता लाड कंुवरि सारंधा पालो लाड प्यार से बाल। नाष करेगा यही शत्रु की नाम धर दओ भात्रुभाल।। 4 फिर से सोच करो माता ने छत्र धरेगा मेरा लाल। शत्रुशल को नाम बदल के टेरन लगी उऐ छतसाल।। सांरधा ने ध्यान मगन हो देखा एक अनोखा हाल। पडा खटोला क्षीर सिन्धु मे ती मे परो बाल छतसाल।। शेष नाग की छाया उपर देख रही माता कर ध्यान। बालक ने किलकारी मारी ब्राजे छत्रसाल बलवान।। भये सभी संस्कार छत्र के चन्द्रकला सम बढत दिखाय। सन सोरा सौ साठ ईस्वी विन्ध्य वासनी पहुंचे जाय।। वर्ष इकादष की उम्मर में हतो यवन सेनापति जाय। दिखे पूत के पाव पालने देख देख माता हर्षाय।। दिलवाडा कौ वासी मोदी महाबली मामा सम भाय। भानुभटट दिलवाड निवासी भयो सहायक छत्ता आय।। दहिने हाथ बने छत्ता के नगर महेबा पोचे आन। चीन भतीजौ लओ चाचा ने छत्तै जानौ पूत समान।। राव सुजान राव चंपत के भाई नगर महेबे मांह। सगे भतीजे छत्र साल ते आदर दै गै हीनी बाय।। पालन पोषण किया पिता सम सिखा युद्ध विधा का ज्ञान। अष्वारोहण लडन भिडन सेना संचालन समुचित ज्ञान।। 5 नगर महेबा मोर पहाडी पंडित राधेलाल गुसाई। ज्येष्ठ षुक्ल रविवार पंचमी संवत सत्रादस अðाइ।। छत्रसाल का झंडा पीला मारुति देवी चित्र बनाय। बने चंद्र और सूर्य ध्वजा मे उज्जवल चरित वंष परिचाय।। दूजौ झंडा केसरिया रंग युद्ध भूमि के आंगूं जाय। एक ध्वजा रै गई बाद मे जी मै चाद सूर्य दरसाय।। युद्ध करन की तिथी षोधकर युद्ध करन को भए तैयार। संगै केवल पाच बछेडा सैनिक जन पचीस सरदार।। बिना बताये धर से निकरे बदले की ले मन मे आग। भरती हुए मुगल सेना मे राजा जयसिह बांधी पाग।। पगडी बदल भाई चंपत कौ खान बहादुर वीर सिपाय। मन मे लज्जा भई छत्र के शत्रुन की सेना बिच आय।। संग मे दाउ चचेरे भाई बडे भाइ थे अंगद राय। धेरा किला पुरन्दर जाकर छोडा किला षिवाजी राय।। संधि हो गई दौनो दल मे हमला बीजापुर पर कीन। रण की नीति षिवाजी की थी मन मे छत्रसाल धर लीन।। कैद हो गए वीर षिवाजी किले आगरे के दरम्यान। छल बल कर के राजनीति से निकले जाय बचाये प्रान।। 6 किला देव गढ गुणवाने का जिसके योद्धा वीर महान। जिनने रक्षा करी किले की कइयक वीर गंवाई जान।। धेरा बन्दी करी किले की रतन शह अंगद के संग। सेना थी कमजोर जहा की छेडी छत्र साल ने जंग।। कूरम मल राजा की सेना छत्र साल ने रोदीं जाय। खान बहादुर ने ललकारा मुगल सैन्य को जमकर आय।। योद्धा कट गये कूूमरमल के छत्र दुर्ग मे किया प्रवेष। लाज बहादुर खा की रखली धुटने टेके वीर नरेष।। मन मे था संताप छत्र के मुगल शत्रु से लीनी रार। नाम बढाया मुगल सैन्य का छत्ता के मन क्षोभ अपार।। कूरममल राजा के सम्मुख सेना मुगल भगी धबराय। वान संभा ली छत्रसाल ने कूरममल को दिया हराय।। टुकडी एक बची दुष्मन की लीनी शरण किले मे जाये। राजपूत सरदार बचा जो हमला किया छत्र पर आय।। धोखे से आया छत्ता ढिंग गर्दन पर था किया प्रहार। कठिन वार था छत्ता उपर गिरे धरनि सह सके न वार।। लोहे का बिछुआ थे पहने गर्दन पडा अधूरावार। धोडा अडा रहा छत्ता ढिंग रिपु ना कर पाया अधिकार।। 7 धायल हो गये छत्रसाल जब निज धोडे ने की सहाय। पहरा देता रहा रातभर दुष्ट सिपाही दये भगाय।। रतन शाह अंगद ने खोजो लई पालकी षिवीर मझांर। लादा छत्ता को पालकी में पहुंचे मउसहनियां द्वार।। भले भाई कह छत्रसाल ने धोडे को दीना सम्मान। बाद मृत्यु के बना समाधी कृतज्ञता का दिया प्रमान।। मिली प्रसंषा छत्रसाल को पर न मिला छत्ता को मान। भेंट मिली ओहदा भी पाया छूंछे रहे छत्र वलवान।। दूर हुआ भ्रम सही राह पर आये युगल भ्रात वलवान। वीर षिवाजी से मिलने की छत्रसाल लई मन मंे ठान।। वीरषिवा का यष फैला था मुगलों को जिन दिया हराय। खटटे दांत किये मुगलांे के औरंगजेब रहा धबराय।। बीच राह में दैलवार की दानकुमारी लीनीं ब्याह। लडकी थी परमार वंष की दक्षिण दिषि की लीनीं राह।। करे पार अवरोध अनेकन पहंुचे जाय षिवाजी पास। लवा युद्ध शौकीन षिवाजी लवा युद्ध से बंध गई आस।। लवा जीत गओ छत्रसाल कौ वीर षिवाजी कौ गओ हार। परिचय पूछा वीर षिवाने छत्रसाल तब दई हुंकार।। 8 सब इतिहास बुन्देल खंड कौ छत्रसाल ने करो बखान। चंपत का बलिदान सुनाया निज इच्छा का दीना ज्ञान।। हर्षित हुए षिवाजी राजे सभी जानते थे इतिहास। कीन प्रषंसा छत्रसाल की दिया मदद का भी विष्वास।। थे निस्वार्थ षिवाजी राजे बोले करो राज्य विस्तार। मदद करेगे धन साधन से दीन भवानी की तलवार।। विदा लई राजे से छत्ता निज स्वराज का मंत्र विचार। मिलंे सहायक तभी सधेगा निज स्वराज का शुद्ध विचार।। किलेदार शुभकर्ण बुन्देला खण्डबुन्देला सूबेदार। मुगल राज्य का रहा सहायक कीना राय सुजान संधार।। चंपतरा उर सांरधा को कर षडयंत्र दिया मरवाय। छत्रसाल का शत्रु बन गया मदद नही कीनी छत्रराय।। छोड दिया शुभ कर्ण धूर्त को आगे मिले चचेरे भ्रात। बलदाउ का संग मिल गया चले ओरछा दोनो भ्रात।। बल दिवान जू शंका मे थे प्रथम गये मुगलो से हार। पहले पत्र लिखे सो पाये पराधीन स्वाधीन प्रचार।। स्वतंत्रता के लिये लडे मिल मिलापत्र फिर किया विचार। सिह सुजान नृपति उरछा ढिंग किया प्रकट अपना सुविचार।। 9 मुगलो के हमले से चिंतित आंषकित थे राव सुजान। दिया वचन उन छत्रसाल को मिल उरछा का राखौ मान।। टूट न पावंे उरछा मंदिर जनता न होवै बेहाल। धन सैना दै वचन ले लिया छत्रसाल को किया निहाल।। नगर ओरछा की रक्षा हित छत्ता धार लई तलवार। वीर बुन्देला मंूछ मरोरें सैवे खां मुगलन कौ वार।। आया सूबेदार फिदाई उरछा मंदिर टोरन काज। ले आया फरमान शाह का गिरा ओरछा पर ज्यो गाज।। किया सामना छत्रसाल ने धक्का खा गए मुगल पठान। दिया खदेड फिदाई खा को राखी छत्रसाल ने आन।। सिह सुजान ओरछा राजा हीरा देवी लये बहकाय। चंपतरा के प्राण पखेरु उडे राव के सामू जाय।। कुल कंलकिनी हीरादेवी की राजा ने कीन सहाय। प्राण गंवाये जब चंपत ने राजा का दुख नही समाय।। किला पुरंदर मरहठठो का जीता कीनी मुगल सहाय। चांदा राज्य जीतने खातिर राजा लडे युद्ध मे जाय।। भेजा जब औरंगजेब ने खान फिदाई कीनी घात। प्रायष्चित करके राजा ने छत्रसाल को दीनौ हाथ।। 10 धूम धाट पर भगा फिदाई छत्रसाल ने दीनी मात। धुर मंगद ने छत्रसाल का दिया युद्ध मे भारी साथ।। राजा राव सुजान सिह ने कीना छत्ता का सम्मान। बाद मृत्यु लधु भ्रात इन्द्रमणी राजा उरछा के भयआन।। चले बिजौरी राजा के दिग राजा रतन शाह के पास। गोल मोल उत्तर दै दीना छत्रसाल की टूटी आस।। तीस सिपाही छत्रसाल पै धोडन के सवार थे तीस। बलदिवान जोधा के दल मे केवल सैनिक थे बाईस।। लूटपाट मे जो कुछ मिलवे उकौ पचपन प्रतिषत भाग। रहै छत्र के पास भाग पैतालिस बल दिवान के पास।। चंपत लाडकुंवरि के हक मे धंधेरो ने कीनी धात। बहनोई बहिनी को छोडा दिया मृत्यु हित दुषमन साथ।। बदला लेने हेतु कुंवर जू छत्रसाल ने धेरा आय। सहरा किला धंधेरो का था कंुवर सेन था रक्षक जाय।। छिपा किले के भीतर जाकर छत्रसाल ने धेरा जाय।। मुगल सैन्य नहि आई मदद को कुंवर सेना दयै हाथ उठाये।। बदला लीना छत्र पिता का लूटी दौलत अपरंवार। वादा किया चैथ देने का दिया छोड तब जागिरदार।। 11 छमा कर दिया छत्रसाल ने गदगद हुआ धंधेरा वीर। ब्याह भतीजी दान कुंवरी को पुत्री साहिब राय धंधीर।ं। साही थाना था सिरोंज का महमद हाषिम थानेदार। भिडा छत्र से आकर हाषिम धडी दोक मैं खाई हार।ं। लूटा टिवरी ग्राम होष से लई चैथ बड गये आगार। भारी बल था छत्रसाल मे जिनकी बडी कठिन तलवार।। जाकर चढे धामनी गढ पे जिसमे हुआ पिता का अंत। हुआ कठिन संग्राम यहा पर मारे गये पिता के हंत।। राजा इंद्रमणी ओरछा का औरंगजेब दिया बहकाये। किया आक्रमण छत्रसाल पर गरजा युद्ध भूमि मे जाये।। छत्रसाल ने इंद्रमणी को भांत अनेकन दओ समझाये। हम तुम दोनो एकई धर के हमै लडाई नही सुहाये।। मानो नही इंद्रमणी राजा कीना छत्रसाल से बैर। किया परास्त छत्र ने उसको भगा दिया तब मानी खैर।। मातामहि गणेष कुंवर ने छत्रसाल से किन्ही भेंट । षान्त हो गया क्रोध छत्र का दिन्ही वीर षात्रुता मेंट।। बडे ग्वालियर ओर जहा पर मुगल तहव्वर सूबेदार। तहबर खा भयभीत हो गया मोहरे छीनी बीस हजार।। 12 आगे बढे भेलसा छीना उज्जैनी को किया पयान। अनवर खा सेनापति आया भिडा संग लै सैन्य महान।। धावा किन्हा अर्धरात्री को मुगल सैन्य ने किया पयान। पकड लिया अनवर सेनापति पाया सवा लाख का दान।। क्रोधित हो औरंगजेब ने अनवर खा को दिया निकाल। वेष्या हंतीन गई शेख संग हो राई छत्रसाल कौ भाल।। बाके पुत्री भई मस्तानी रुप सुन्दरी मात समान। बाजी राव पेषवा के संग रानी बनी सती समआन।। अलीब बहादुर तीकौ सुतभऔ बांदा कौ नबाब सुजान। सन सत्तावन बनो बिरोधी छीन लई जागीर महान।। बांदा से इन्दौर भेज दओ दई पेषंन अगरेजी राज। बांदा मे सन्तान बनी है वर्तमान मे भयो सुराज।। मिर्जा सदरुददीन बहादुर धामौनी का सूबेदार। तीस सहस सेना सेनापति मुगल राज्य का था सरदरा।। दिया संदेषा छत्रसाल को मिर्जा सदरुदीन पठाय। लूट पाट को छोड छाड कर मागौ क्षमा शाह से जाय।। सालाना देव चैथ शाह को वरना रहौ युद्ध को त्यार। उल्टा उत्तर दिया छत्र ने सदरुद्धीन ने खाई खार।। 13 करते थे अभ्यास छत्र जू साथी संग मे केवल खात। थेर लिया सैयद ने छत्ता आत्म समर्पण की नी बात।। दौनो सेना भई सामने पैलां भई छत्र की हार। दिना दूसरे की पारी मे बुन्देलन मैदां लये मार।। तोपे बिखर गई मिर्जा की लोथें पडीं हजार हजार। मिर्जा सदरुद्धीन कैद भये उनने सवालाख दए हार।। कई यक ज्वान बुन्देलन केरे आये इसी युद्ध मे काम। बिखरी पडी खेत मे सम्पति छत्र साल ने लई तमाम।। चित्रकूट तीरथ चल दीना दर्षन कीने कामद नाथ। सगरी सेना संग मे लीनी छत्रसाल तब भये सनाथ।। सूबा सूबेदार हमीदा छत्ता को लीना उन छेक। साधु संत सब व्याकुल हो गये उनने पाये कष्ट अनेक।। छत्रसाल ने करी चढाई हामिद खा को दिया हराय। सवालाख की चैथ वसूली दीना छोड हमीदा राय।। सामग्री भी मिली शत्रु की संगै भयो राज्य विस्तार। आषा बधी यही हिन्दुन को हुइयै मुगलन से उद्धार।। मउसहनिया के हारन मे प्रान नाथ जू भेटे आय। दीक्षा लीनी छत्रसाल ने देषधर्म हित दीन सलाय।। 14 कषी से पंडित बुलवाये विधिवत हुआ राज्य अभिषेक। सन सोला सौ सत्तासी मे छत्र भये महाराज विषेख।। महाराज बन छत्र साल के मन से रहो न तनकउ मान। कविता रच के छत्रसाल ने कीनो ईष्वर को गुणगान।। बढ कर आय गये मैहर मे माधवसिह नाबालिग राज। विधवा रानी संचालक थी नाबालिग पै रक्खौ ताज।। सेना आइ नही लडने को गढ पर सें गोले बरसाय। मरे सिपाही छत्रसाल के अंतिम विजय छत्रभई आय।। गढ के भीतर धंसे छत्र जू माधव सिह लिया बधवाय। संधि करी रानी ने आकर लिया चैथ का वचन कराय।। जीत लिया मैहर छत्ता ने बांसी गढ को किया पयान। दांगी केषवराय वीर था जाहिर जागीरदार महान।। खण्ड बुन्देली स्वतंत्रता हित दांगी चलो हमारे साथ। कथन सुना यह छत्रसाल का दांगी तीनो उंचो माथ।। कुछ अपषब्द कहे दांगी ने छत्ता का कीना उपहास। द्वंद्व युद्ध करने के खातिर छत्रसाल से करो प्रयास।। जरासंध और भीम सरिखे दोनो आये डटे मैदान। दीनी टक्कर छत्रसाल को विवष रहे बुन्देली जवान।। 15 प्रात काल से सांझ हो गई जोष बढा उनमे अधिकाय। छत्रसाल कौ तीर समायो दांगी के वक्ष स्थल जाय।। धायल होकर गिरा धरनि पर छत्रसाल लओ मूड उडाय। दांगी के कुछ सैनिक टूटे दिये बुन्देलन मार भगाय।। केषव राय वीर था लेकिन अभिमानी औगुन की खान। दुखी हृदय से छत्रसाल ने दाह क्रिया करवाई आन।। बेटा विक्रमसिह दांगी को धीर बंधा युवराज बनाय। बात नही की चैथ वसूली विक्रम सैनिक लिया बनाय।। पद प्रधान का दिया पुत्र को कीन्ही दया वीर ने भाय। मान वीरता का रख लीना हर्ष रहा जनता मे छाये।। भये युद्ध मे धायल छत्ता मउ जाकर कीन्हा विश्राम। एक माह तक छोड काम को भली भाति किन्हा आराम।। कम्मर कस लई फिर छत्ता ने चढे ग्वालियर की जागीर। नगर पवाया मे रहता था सुबेदार सैयद खा वीर।। हुआ पराजित मय सेना के छत्रसाल सें मानी हार। लूटा नगर चैथ का वादा लेकर छोडा सूबेदार।। फिर से आया महमद हाषिम था कटिया का थानेदार। लेकर सेन भिडा छत्ता से हुआ पराजित दूजी बार।। 16 हरीसिह ठाकुर दुहिता संग छत्ता किया तीसरा ब्याह। हनु टेक को लूट कूच कर आगे लई मउ की राह।। बडे बडे कुवंर बुंदेला ठाकुर मिल गये छत्रसाल संग आय। धाक वीरता की फैली है चहुं दिषि रही प्रभूता छाय।। सबल सिह, दीवान दीप चंद बुन्देला, संग पृथ्वी राज। जगत, सकत, धंधेर बखतसिह मिले आयके यादव राज।। जाम शाह उर वीर इन्द्रमणि जगत सिह संगै गोपाल। भरत शाह उर अमरसिह जू माधव राय मिले तत्काल।। उग्रसेन और उदयभान सिह वीर बुंदेला बडे जुझार। गाजी सिह, जय सिह, राजसिह, अमीर सिहं करी जुहार।। मिले गुमान, रायमन दौवा स्वागत करे वीर छत्रसाल। अच्छी सेन बनी छत्ता की शत्रु देख के भये विहाल।। किन्तु हाय दुर्भाग्य मिले ना नगर ओरछा के सरदार। पहले धात करी चंपत पै शंका फूट बनी आधार।। दई सूचना दिल्ली पत खां क्रोधित हुआ मुगल सरदार। दीन्ही पठा मुगलई सेना नगर ओरछा के मझदार।। रतन शाह ने आगे बढके दीना छत्रसाल को संग। बढते कदम रुके छत्ता के मुगलन से भई भारी जंग।। 17 रन दूलह उपनाम का रुहिल्ला कौजदार औरंग भिजाय। बसिया के ढिंग छत्रसाल ने अभिमानी को दिया हराय।। धामौनी का फौजदार था सेना सहित भगा सरदार। बडी सेन पुनि लेकर आया धामौनी पर किया प्रहार।। हुआ युद्ध धनधोर सेन बिच सागर के मैदान मंझार। टिकी न रनदूलह की सेना खाली गया दूसरा वार।। फौजदार रनदूला के संग मिल गये विद्रोही सरदार। सैनिक तीस हजार साथ मे छत्ता संग रच लीनी रार।। रहा तोप खाना छत्ता संग गोलन्दाज कुषल ठहराय। छत्र साल संग प्रजा मिल गई उसका मिला सहारा भाय।। अपनी अपनी सेना लेकर साथ बहत्तर थे सरदार। मुगलो से लोहा लेने को हाथ मीडकर थे तैयार।। रहे कुषल जासूस साथ मे प्रजा वर्ग ने करी सहाय। जंग जीतने का साहस था तन मन मे था बल अधिकाय।। गढकोटा का कित्ना जहा पर मुगल शासको का अधिकार। थोडी सेना रही शत्रु की छत्ता सेन दई संहार।। आई तभी मुगलिया सेना रण दूलह जाकौ सरदार। हुई पराजित बुरी तरह से सह न सकी तोपो की मार।। 18 गढ से गोला चले भयानक पाछे से छत्ता की मार। भागे चली मुगलों की सेना फैला यष छत्ता सरदार।। पीछा करके रणदूलह का लूट लये मुगलन के गांव। लूट खजाना नरवर गढ का छत्ता धरे जमाकंे पाव।। खबर मिली औरंगजेब को बक्का खां भेजा तत्काल। तुर्की सेना ने बसिया ढिंग फेंको छत्रसाल पर जाल।। छत्रसाल के एक वीर ने तुर्क तोपखाना दओ बार। किया आक्रमण छत्रसाल ने सेना मुगल धरे हथियार।। विजय प्राप्त कर छत्रसाल जू जिगंनी गांव पधारे आय। जगिरदार पडिहार सुता भगवान कुंवरि को ब्याहो जाय।। ब्याह कराने सडवा वाजने आयो वीर सजा बारात। सेना के दो भाग कर दये थोडी सेना लीनी साथ।। हुई फिकर औरंगजेब को तहवर खां को भेजा फेर। भांवर पडते वक्त मुगल ने लीना छत्रसाल को धेर।। हुआ विकट संग्राम तहव्वर सह न सका छत्ता की मार। छिन्न भिन्न सब सेना हो गई तहबर खां की हो गई हार।। बेवस होकर दिल्ली पहंुचा दुखी हो गया आलमगीर। मउसहानिया पहंुचे छत्ता विजया दषमी मनी अखीर।। 19 चार माह बरसाती काटे महलन भयो विनोद प्रमोद। कालिंजर की फतह करन को चले वीर मन में भरमोद।। करम इलाही किलेदार था संगै रही मुगालिया फौज। बल दीवान वीर ने धेरा कालिंजर मन में भर औज।। दिना अठारह गोला बाजे बहुतक चली वहां बन्दूक। मरे सिपाही बल दिवान के फिर भी भई न तनकउ चूक।। रसद खत्म हो गई किले की सैनिक निकरे प्रान बचाय। युद्ध हुआ धमसान परस्पर कालिंजर गढ धुसे अधाय।। कितनउ वीर मरे कालिंजर बहुतक भई सेना की हान। नंदन छीपी कृपाराय उर बाधराज ने दीने प्रान।। सेना के सत्ताइस योद्धा धायल भये किले दरम्यान। चैबे मान्धाता को कीना किलेदार खुद बलदीवान।। कांलिजर से मउ को आये दक्षिण दिषा किया प्रस्थान। गढ मंडला सागर को लूटा फिर दमोह कीना अस्थान।। विरहिन लूट डोलची लूटी नरसिंहगढ की राखी लाज। किला हिनौती पडा बीच मे छत्ता जीत मिलाये राज।। एरच फिर जलालपुर जीता फिर आगे को किया पयान। पार करलई नदी वेतवा भिडे वहां पर मुगल पठान।। 20 हुई परास्त मुगलिया सेना कैद हो गया अबुललतीफ। धन्धेरे हमीर से मिलकर पाये प्रान कोटरा चीफ।। जाट धटी मे डेरा डाला फिर से सैयद मुगल लतीफ। फिर से खाई मात छत्र से भाग गया दक्षिण को क्लीव। सौ अरबी धोडांे को छीना तेरह तोपंे सत्तर ऊंट। आत्म समर्पण किया क्षमा कर चैथ लई फिर दैदई छूट।। फिर से धात करी दुष्मन ने छत्रसाल दीना संहार। जेठे पुत्र पदमसिह जू को दिया कोटरा का अधिकार।। बांदा की जनता ने मिलकर कीना छत्रसाल सम्मान। पे्रम भाव से छत्रसाल ने उनको दिया अभय का दान।। जागिर दार गांव सताइस लडने की जिनखौं थी चाह। भये सामने छत्र साल के हुए पराजित लुटे कराह।। सीमाये बढ गई वीर की भारी हुआ क्षेत्र विस्तार। मगर मुगालिया साम्राज्य की सेना संख्या अपरंपार।। शक्ति क्षीण कर दई छत्र की धीरज की सीमा रई टूट। डूब रहा मुगलों का सूरज हार दई आपस की फूट।। लिखा पत्र औरंगजेब को क्षमा मांग ली थी छतसाल। करने हेतु दमन दक्षिण का चला वीर मन मे बेहाल।। 21 खान जहां सेनापति के संग छत्रसाल गये दक्षिण पार। पंच हजारी मनसब पाया साढे चार सौ धोड सवार।। फिरी दुहाई अलमगीर की सत्ता चढी षिखर पर जाय। छत्रसाल निज राज्य बनाओ पक्कौ शासन मुगल हटाय।। छोडे मुगल लूट जनता की जनता अमन चमन से राय। मन्दिर मूर्ती टूट न पावे सन्धि करि मुगलन से जाय।। दो चेहरे औंरगजेब के छत्रसाल ने लये पहचान। बाहर से सादा सूफी था भीतर से कन्जूस महान।। सम्पत छीन लई बहना की मागी जवहरात सौगात। षाहजहा ने मतलब समझा जौ करहै बहना से धात।। षाहजहा की मौत की खातिर जहर मिली औषधी बनवाय। नाबालीक पुत्री दारा की सम्पति छीन लई बहलाय।। मित्र मीर जुमला के सुत की छीनी दौलत खाई खार। सत्तर लाख रुपै चादी के सोने के पैतीस हजार।। महमद सइद मीर जुमला ने लूटपाट दक्षिण मे कीन। बाइस मन हीरे लै आया संगै मूर्ति स्वर्ण लई छीन।। अष्टधातु सोने की प्रतिमा जुमलामीर दई गलवाय। नालै बना लई तोपन की अत्याचार रहो जग छाय।। 22 धूम धाम से राज तिलक भओ छत्रसाल जू भये महराज। फिरी दुहाई देसन देसन धन्य बुन्देलन के सरताज।। सोरा सौ नब्बे इस्वी मंे औरंगजेब पठाई सैन। तीस सहस सेना को लेकर अब्दुल समद तरेरे नैन।। मौधा के मैदान मध्य में साभू भये समद छतसाल। षुक्ल चैत पंचमी तिथि मे समर हुआ दिन प्रातःकाल।। मध्य भाग में छत्रसाल थे भाग दाहिने बलदीबान। बायें भाग रायमन दडवा छिडी जंग दोइ दल दरम्यान।। पहले युद्ध हुआ तोपों से फिर हो गई तोपें बेकाम। चली कटारें उर तरवारें कहते लडते हो गई शाम।। खेत रहे सरदार दोउ दल फिर गये छत्रसाल भये जाम।। मदद करी बुन्देली सेना छत्ता जीत कमाये नाम।। सन सोरा सौ अस्सी मे शादीपुर निकट बेतवा पार। चूर हुआ मद अबुल समद का पैदल भगा मान कर हार।। बन्दी बना लिया छत्ता ने लई चैथ दओ छोड पठान। धाव बहुत आये छत्ता के हार करारी औरंग मान।। हमला किया सुहावल जाकर राजा था गजसिंह सरदार। हुई लडाई चार दिना लौ गजसिंह डार दये हथयार।। 23 चैथ वसूली करी छत्र ने गंगा सिंह ने मानी हार। आगे बढे भेलसा आये बहलुल खां था सूबेदार।। कुषल बहादुर सेना पति था उच्च वंष का मनसबदार। सेना दई विषाल साथ में दिया तोपखाना अधिकार।। कई भाग सेना के कीन्हे केन नदी पर पहुंची जाय। करी चढाई पन्ना पर तब किला राजगढ किल्लेदार।। रोक लेंव छता की सेना बहलुल खां ने किया विचार। किला राजगढ ध्वस्त करुं फिर पन्ना जाय करुं अधिकार।। भेष बदल लओ छत्रसाल को किया सामना सैनिक जाय। देख सामने छत्रसाल को बहलुलखान गया धबराय।। संदेषा दक्षिण को भेजा छत्र राजगढ पहुचे आय। धेर लिया बहलुलखान को हुआ समर दोनो दल आये।। पांच दिना तक युद्ध चला तब काटे छत्ता चुने जबान। धामौनी के निकट युद्ध मे काटा सिर बहलोल पठान।। धामौनी से आ पहुचे मउं रहे कछुक दिन मउ मंझार। इसी बीच सेना ने कीना नगर कोटरा पर अधिकार।। छोटे मोटे राज्य बचे जो सह न सके छत्ता की मार। किया समर्पण राजाओं ने छत्ता की भई जैजैकार।। 24 किया आक्रमण सेहंुडे जाकर खां दलेल था जागिरदार। पगडी बदली चंपतरा संे मांगी मदद न दीनी यार।। कैसे तुमरे भाई चंपत जिनके पुत्र मचाई रार। हुई लडाई बल दिवान ने कीना सिहुंडा पर अधिकार।। ज्ञात नही था पिता मीत था भारी चूक हुई है भाय। छत्रसाल को चिठठी द्वारा पिछली याद कराई जाय।। लौटाई जागीर छत्र ने कीन्ही भरपाई जाय तत्काल। लाज रह गई खां दलेल की विफल हुई औरंगी चाल।। फैल गयो यष छत्रसाल को मिला पुण्य का फल तत्काल। भई निराषा षांहषाह को जानो छत्रसाल ज्यों काल।। राजनीति का मंत्र यही था मिले राज्य मे जो जांगीर प्रजा सुखी हो जाय उतै की करते यही षिवाजी वीर।। हिन्दु मुस्लिम लडे परस्पर मरे बंद गढ के दरम्यान। नही मिली जब मदद कही से जूझ गये सब मूर्ख महान।। छत्र साल जू की सेना मे दउआ रायमन वीर महान। गोली लगी वीर दउआ के छत्ता गरजे सिह समान।। नष्ट भ्रष्ट करडारी सेना सोरह सौ मुद्रा लई पाय। छोड दये उन सारे कैदी जो अत्याचारी कहलाय।। 25 अस्मद की सूबेदारी थी धामौनी मे शाह सहाय। पकडा गया पहाडी मे फिर दैके चैथ रिहाई पाय।। हुआ यही परिणाम युद्ध का सभी हुए राजा के संग। नही हुई फिर कोई लडाई मुगलो की सेना भई तंग।। हटा दिया अस्मद को पद से षाहकुली भओ सूबेदार। सच्चा सैनिक वीर सिपाही विषय भोग से दूर जहार।। मुगल सिपाही हुए विलासी सब रहते थे धनी समान। सस्ती बिकती सभी वस्तुऐ सेना के बजार दरम्यान।। पहले सुधरा षाहकुली खा फिर सेना मे किया सुधार। चुस्त दुरुस्त हुई सब सेना तब धावा को भओ तैयार।। इधर बुन्देले अभिमानी भए समझे अरि को मसक समान। षाहकुली ने किया पराजित चूर्ण हुआ उनका अभिमान।। चैराहट कुटरा जलालपुर आदि नगर हथियाए ज्वान। हारे बलदिवान मैदा मे बुन्देलो की धट गई शान।। छत्रसाल ने धीरज धर के फूक दये मुर्दन मे प्रान। भरे जोष मे फिर बुन्देले जेल गये मुगलो के बान।। षाहकुलीन वंष तूरानी हैदरबाद निजाम कहाय। सन सोरासौ तेरासी मे मउसहानिया करि चढाय।। 26 सेन बडी लेकर आया था छत्ता को टक्कर दई आय। मारे गये पाच सौ सैनिक षाहकुली खा से टकराय।। छापा मार युद्ध से छत्ता षाहकुली को दीन हराय। कैद हो गया षाहकुली खा चैथ चुका कर छुटटी पाय।। बार दूसरी अस्मद आया षाहकुली ने किन सहाय। अस्मद कैद हुआ छत्ता ढिगं दिल्ली षाहकुली गओ भाय।। बार तीसरी नन्दराम संग चढा आठसौ लयै सवार। हुआ युद्ध नौगाव छावनी कैद भयो गयो स्वर्ग सिधार।। अंतिम युद्ध हुआ मुगलो से छत्रसाल से ध्यान हटाये। आलमगीर गया दक्षिण को सेनापति का रूप सुभाय।। पीछा छूटा मुगलषाह से खत्म हुआ मुगलई आंतक। मृत्यू हुई औरंगजेब की मरहट्ठो की भई बढंत।। कुछ ही भाग जीत पाया था असफल हुआ दकन मे जाय। दूर हुआ भय अब दिल्ली का छत्रसाल सोये सुख पाय।। स्वतंत्रता को डंका बज गओ छत्रसाल स्वाधीन कहाय। बीजा पुर के इक पठान से युद्ध हुआ जीते छतराय।। धामौनी का फौजदार था खालिक खान मुगल सरदार। धामौनी वा उसका जंगल चाहा कीन छत्र अधिकार।। 27 धामौनी वा हथियारो पर हमला किया एक ही बार। षास्त्रागार पाओ छत्ता ने धामौनी मे भइ तकरार।। कठिन लडाई छत्रसाल की भागा खालिक खा सरदार। सन सोरासौ बासठ सालै चैथ दई भागो सरदार।। सैयद खानजहा का बेटा नाम मुनव्वर खा कहलाय। फौजदार था ग्वालियर का धमूघाट पर रार बढाय।। त्राहि त्राहि मच गई सेना मे चमकी छत्ता की तलवार। मुगल खजाने की जा लूटा जंग बहादुर खागओ हार।। खान दिलावर फौजदार था धामौनी का सिपह सलार। कांलिजर की विजय सुनी तब छत्ता पर तानी तलवार।। साथ तोपखाना था जिसके छीन छत्र ने किया प्रहार। प्राण बचा कर भागा हाथी धोडे तोप मिले हाथियार।। जनता दबी रहै मुगलो से जमुना तट के उत्तर भाग। आया खाँ दाराब लडन हित छत्रसाल मन जागी आग।। मातृभूमि के लिए समर्पित महिलाओ के भए विचार। नही चूडियाँ पहनेगे हम हो षहीद पति चलते रार।। सन सोरा सौ अठहत्तर मे गुप्तचरो ने खबर बताय। छत्रसाल ने मार काट कर षत्रु सेन को दिया मिटाय।। 28 आया दुष्ट तोडने मंदिर बन्दी कीन वीर छतसाल। ना आउ बुन्देलखण्ड मे दिया वचन छोडे छतसाल।। धामौनी का दुर्ग जीतने शहंषाह रूमी पठवाय। जाय खदेडा छत्रसाल ने अफ्रसियाब भागा धबडाय।। वीर षिवाजी की छाया मे छत्रसाल कई सीख अनेक। थोडे से सैनिक लेकर भी लिया छत्रसेना को छेक।। धोडो की टापो को सुनकर समझ गये दुष्मन की चाल। गली सांकरी से रूमी को धेरा कैद किया छत्रसाल।। बाकी सेना अनजानी थी किया आक्रमण दुर्बल जान। गाजरमूली जैसे काटे सेना नष्ट हुई अनजान।। ईराकी धोडो की छीना रूमी भगा बचा कर प्राण। तोपे छीन लई रूमी की लूट लई सम्पत बलवान।। सगा भतीजा था दिलेरखा खामुराद सेहुआ सरदार। सुनी पराजय जब चाचा की चढ बैठा बादा के हार।। चाल समझ के खामुराद की छत्ता वीर दबोचा जाय। गाव पहाडी बादा के ढिगं लिया युद्ध मे कैद कराय।। क्षमा माग कर छत्रसाल से चैथ दीन तब छूटा जाय। मैनेजर नायब दलेल का फिर से लड गओ स्वर्ग सिधाय।। 29 धामौनी का सेना नायक खाइखलाख बडा होषियार। गढकोटा पर युद्ध हो रहा मदद हेतु पहुचा सरदार ।। युद्ध भूमि मै ही पाजी का छत्र कर दिया बेडापार। जीत न पाए मुगल सिपाही बडी कठिन छत्ता तलवार।। खान बसालत फौजदार था पनवाडी का अति बलवान। षाहजहा ने मउ हथियाने हेतु चलाया था अभियान।। ज्ञात हो गया छत्रसाल को धावा पनवाडी पर बोल । मुगल खजाना लूट पाट कर खानबसारत कीना गोल।। सन सोरा सौ तेरासी अफजल धेर लिया छत्ता का आय । रमतूला बज उठा युद्ध का सैनिक भिडे परस्पर जाय।। मुगल रक्त से धरा रंग गई हुआ पराजित अफजलखान। प्यासा ही मर गया युद्ध मे सारा खेत बना षमषान।। सेनपति विख्यात मुगालिया अनवर खैरागढ मे राय। अस्त व्यस्त थी सेन मुगालिया सेनापति बन धमका आय।। सधी सधाई सेन छत्र की सेन मुगालिया दई हराय। बंदी अनवर हुआ चैथ दे छूटा छत्ता बुरी बलाय।। सैनिक सिपह सलार मुगालिया खाषमषेर जंग कहलाय। कई युद्धो मे हुआ पराजित प्राण बचाकर भागा जाय।। 30 नरसिहगढ गौधा जलालपुर कोटा गढा रामगढ छान । खा षमषेर मटोध आदि मे लडा छत्र से हारी मान।। छत्रसाल के रौदन के हित संगै लिए बहुत सरदार। नाम शेरखा सेनापति था आया खण्ड बुन्देल मंझार।। पनवारी मे मैदानन मे मुगल मोर्चा लिया लगाय। छत्र साल ने अपनी सेना मउ सहनिया लई सजाय।। जोष भरा था बुन्देलन मे लपके भूखे शेर समान । षीत काल का कुहरा छाया टूटी कम्मर हारे ज्वान।। हुआ मृत्यु को प्राप्त षेरखा यधपि अफगन कीन सहाय। सूरज चमक रहा छत्ता का टिकता कौन रहा भरमाय।। सन सोरा सौ तेरासी मे अफगन षेर खान सरदार। भागा था मटोध के हारन छत्रसाल से खाकर मार।। संग मे लिये विषाल वाहनी मउ सहनिया डेरा डार। मिली सूचना यह उसको थी छत्रसाल ना मउ मंझार।। दिव्य अस्त्र था मिला छत्र को नारायाणी थी सेन बुन्देल। तिदुनी दरबाजे पर आया छत्ता बार सका नहि झेल।। दई चैथ सौगंध खबाई तब अफगन को छोडा जाय। रहा वचन का कच्चा अफगन हृदय नगर तब मारा जाय।। 31 था नामी बुन्देलखण्ड मे खानजहां षाही सरदार। मिलकर इन्द्रमणि उसने गुलषनबाद करी तकरार।। हार गया था छत्रसाल से मलखेडा मे फिर भई हार। अवतारी थे छत्रसाल जू सह न सको छत्ता की मार।। नदी बेतवा के तट पर था हमला बोला खान जलाल। सोच रहा था छत्र संगठन है कमजोर सुना था हाल।। भिडे बुन्देले मुगल सेन पर धाये भूखे षेर समान। कैदी होकर चैथ चुकाई ज्यो खरगोष भगा ले प्रान।। सन सोरा सौ इकहत्तर से तैतीस साल भई धमसान। वृद्ध हो गये छत्रसाल जू अलमगीर के निकरे प्रान।। दो करोड थी आय छत्रकी पुत्र जन्म बहु खर्चा कीन। सुनते विनय प्रजा की निसदिग धर्म धुरंधर काव्य प्रवीन।। प्रजा मानती पिता छत्र को राज उन खां पुत्र समान। राखे दया दृष्टि विप्रन पर उनकौ करते माफ लगान।। पडो अकाल बुन्देल खण्ड मे करी मदद परजा की जाय। दो करोड की रकम अमानत मानी परजै दई खवाय।। दिल्ली से कवि जी इक आये मुद्रा दो करोड संग लाय। पति पत्नी थे बिन संतति के आय बसे पन्ना मे जाय।। 32 छत्र साल को रकम सोप दई रकम खजाने दइ पहुचाय। ओई रकम नृप छत्र साल ने निर्धन प्रजादई बटवाय ।। छत्रसाल कौ रुप निरखि के कवि की विधवा गई लुभाय। हमे तुमई सौ बेटा चाने हमरौ संग करौ तुम आय।। वीर छत्र ने उके स्तन अपने मो मै लये लगाय। सांसौ पूत तुमारौ हो मै सुन के कामिनि गई लजाय।। राज काज कौ हाल जानबे बदले वेष रात महाराज । चोर उचकन पतौ लगाबे देवे दण्ड सुधारे राज।। छत्रसाल उर महाबली की जोडी रही देष विख्यात। काका काका कहते उनको नही समझते उनको दास।। राजकाज करबे बुन्देले लेते छत्र बली को नाम। उनके काज सिद्ध हो जाते सबई करत उनखौ परनाम।। कोई कवी साधु सन्यासी आया छत्रसाल दरबार। दोई हातन से दान देत ते सासे मन कीने साकार।। मुगलो के थे प्रबल विरोधी कवि भूषण जिनका उपनाम। जन्मे कानपूर तिकुआपुर सुर हस्तर सन बहतर नाम।। कविता पढी छत्र दरबारै लाख रुपैया दीनै दान। लगे पालकी मे कवि जू की फैल गयो यष जग दरम्यान।। 33 मानी आज्ञा लाल कवी की नगर छत्रपुर दीन बसाय। छत्र प्रकाष लाल कवि रच के छत्रसाल दये अमर बनाय।। छिन्न भिन्न साम्राज्य हो गया उभरे बडे बडे महराज। सासं लई सुख की छत्ता ने खण्ड बुन्देला भयो सुराज।। बादषाह बन गये बहादुर षाह जफर दिल्ली दरम्यान। छत्रसाल का हुआ बुलावा षाह जफर किन्हा सम्मान।। भेजा छत्रसाल को लडने लोहा गढ उन छेका जाय। लोहागढ का सबल विरोधी दिल्लीपति का षत्रु कहाय।। बडे बडे मुगलइ सेनापति हारे भई प्रानन की हान। अच्छे अच्छे वीर हार गये धटा नही उसका अभिमान।। जागिरदार विरागी गढ का कीन्हो गढ कौ बहुत सुधार। खाई खुदी गेर कें गढ मे तीमे मगरन की मगरार।। युक्ति विचारी छत्रसाल ने वीर षिवा सी उक्ति बनाय। बडे बडे नगडा रमतूला तुरही बजी किले डिंग आय।। गधा पच्चीसक लये छत्ता ने उनमे बांध लये हाथियार। खेल तमासे संगै लैके रुप गधेरन को लओ धार।। पहरे दारन से गिगिया के बोले बुन्देला सरदार। नरियल चढा पौरिया बाबा ले बारात लौट धर जाय।। 34 पहरेदार खोल दरवाजा बरातियन से बोले जाय। जल्दी जल्दी चढा नारियल ले बारात तुरतई धर जाओ।। बने बराती वीर षिवाजी षाइस्ता को धेरो जाय। छत्रसाल भी बने बाराती धोखा दै गढ पहुचे जाय।। तीस हजार विरोधी सैनिक आये लोहागढ मे काम। विजय मिली सम्पत भी लूटी छत्रसाल को हो गयौ नाम।। भये पुरस्कृत गुणी कवीजन राजा छत्रसाल के राज। गुण ग्राहक कवि छत्रसाल जू जुडता अदभुत कवी समाज।। चिडते थे औंरगजेब से मुगलो से भारी छत्रसाल। भूषण लाल आदि कवियो को दीन्हे दान मान अरु शाल।। छत्रसाल के राज्य की सीमा 35 पँाच नरियल चढे वहा पर पहरेदारन दओ परसाद। सबई भये बेहाल पहरुआ खालओ बेहोषी परसाद।। कछु सिपाही नाच गान मे मगन भये तब निकरे ज्वान। तनक सिपाही ते गढिया मे कर धर को काम कर रहे ज्वान।। हमला कर दओ छत्रसाल ने सबरी कटै कढी के ज्वान। फाटक लगा दओ किल्ले को फत्ते लोहागढ भई आन।। षाहबहादुर जफर षाह ने ओहदा दे किन्हो सम्मान। लिया नही पद छत्रसाल ने खोया नही निजी सम्मान।। सत्रह सौ छब्बीस ईस्वी फार्रुख षाह मोहम्मद खान। बंगस चढा जैतपुर उपर जगतराज को राजा जान।। धायल हुए युद्ध मे राजा रानी ले लई युद्ध कमान। अमर कुंवरि रानी ने बडकर ललकारा दुषमन बलवान।। बडा हौसला बुन्देलो का सैन नबावी छोडी आन। जय जयकार हुई रानी की दुषमन भागा लेकर प्रान।। फिर से चढा जैतपुर गढ पर संगै था दल्लैल पठान। साहस छूटा बुन्देलो का नगर जैतपुर मे भई हान।। कब्जा किया जैतपुर गढ पर भितर धुसे मुगलिया ज्वान। छत्रसाल अब बृद्ध हुए थे शक्तिहीन अपने को जान।। 36 भेज दिया संदेष पेषवा बाजीराव मराठा आन। सेना लेकर चढा पेषवा नगर जैतपुर के दरम्यान।। महल जैतपुर के अन्दर ही धेर लिया बंगस बलवान। दिना दोक तक डेरा डाला रसद चुकी महललन मे आन।। देख लडाई मरहट्ठन की धबराया बंगस नब्बाव। हाथ उठादयै संधि करन को झेल सका न उनका ताव।। करों नही हमला दोबारा दिया वचन बंगस ने फेर। हर्षित होकर छत्रसाल ने किन्हा मान मरठन केर।। ब्याह गई पुत्री मस्तानी भाग तिसरा गयो दहेज। झांसी सागर बांदा कोटा उर दमोह को दिया सहेज।। मस्तानी से पुत्र हुआ एक अली बहादुर जिसका नाम। बांदा का नब्बाव बन गया आठ बार था षाही काम।। पन्ना बीच तला धुव्र सागर जीपर करै छत्र जू सैर। मिला संदेषा प्रान नाथ का छत्ता मांगी गुरु की खैर।। जोड लिये सारे मंत्री गढ पुत्र जुर गये सहित समाज। चैकी मोतीबाग छत्रजू बैठक लई राज के काज ।। राजनीति के मंत्र बताये पुत्रन को दीन्हे उपदेष। षिक्षा की अरुधर्म नीति की सब मे इकता रहे विषेष।। 37 चैकी पर जामा धर राजा नगर छोड वन कीन्ह पयान। गुरु आज्ञा धर लई सीस पर दक्षिण गये न कोउ जान।। वर्ष सतासी की आवर्दा कीनौ देवलोक प्रस्थान। जामा रखा जहा चैकी पर उनकी बनी समाधी जान।। सत्रा सहस अठासी सम्वत जेठ बधी तीजै बुधवार। बारह मई सत्रह ईकतिस सन छत्ता गयै परलोक सिधार।। पुत्र जमना दखिन नर्मदा चम्बल टोन्स पूर्व पछियाए। छत्रसाल को राज बढ गयो शानी नही दुसरी आय।। छत्ता तोरे राज मे धक धक धरती होय। जहं जहं धोडा पग धरे तहं तहं हीरा होय।। सुदृढ राज्य करवे की खातिर छत्ता कीन अनेकन ब्याह। उन्निस रानी भई राजा के मुसरो वेष्या वीसई आह।। अरसठ पत्रु भये राजा के जिनमे चार भये प्रसिद्ध। जगत भारती हृदय षाह को यष जग भयो विषेष प्रसिद्ध।। भाई भाई प्रेम नही था बडी फूट भइयन के बीच। टुकडे भये राज के सूखी प्रेम बेल भई कीच।। जेठी रानी देवकुवंरि के जन्मे बेटा हिरदे षाह। जन्मोत्सव पर धूम धाम से खर्च हुआ था सोलह लाख।। 38 पुत्र जन्म के बितै साल कछु रानी गई परलोक सिधार। लाड प्यार से पला छत्ता रण कौषल संग दीन्हा प्यार।। पन्ना के युवराज बने तब मझंली माता नही सुहाय। पन्ना छोड जीत रीवा को बसे नगर रीवा मे जाय।। छत्रसाल की आज्ञा पाकर रीवा तज पन्ना को आय। विजयी खंभ बना रीवा मे बुन्देली दरवाजा आय।। तीन हजार सिपाही संग मे बल विक्रम हनुमान समान। पहले सैनिक भोजन करते राजा करते भोजन आन।। छत्रसाल बनवास करै पै रहै वर्ष तक छै तक महराज। सौपा राज्य सभासिंह बेटै बीत राग भयै हिरदेराज।। छती पहुचाई धर्म सनातन मंदिर सिगरे दयै गिराय। चार पीढिया बुन्देलन की पीडित भई महादुख पाय।। बदलो लीनौ छत्रसाल ने तहस नहस कर डारो राज। फिरी दुहाइ छत्रसाल की धन धन छत्रसाल महराज।। सवालाख मुगलन की सेना मुठठी भर थे छत्रजवान। धीरज साहस पाय कुषलता भारी युद्ध किया बलवान।। निज साहस बल और बुद्धि से छत्ता जोडा सैन्य समाज। खटटे दात करै मुगलन के कायम किया बुन्देला राज।। 39 देख वीरता छत्रसाल की फैला वीरो मे उत्साह । मुगल दासता से स्वतंत्र हो यही सभी के मन मे चाह।। सीख लीन अलाउदल से किया महाभारत का ध्यान। करि वीरता अदभूत रन मे धन धन छत्रसाल बलवान।। चरित सिन्धु छत्ता का व्यापक जिसमे तैरे कवी महान । मै अबोध नादां गुनहीना करियौ क्षमा सबई गुन वान।। समाप्त BY M.M. PANDAY TIKAMGARH [M.P.]M M PANDAY TIKAMGARH