viyang on line kavi sammelan
.कवि परिचय-
नाम :-राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’
जन्म :-15.06.1972 (लिधौरा)
माता-पिताः- श्रीमती मिथलेश,श्री सी.एल.नामदेव
पत्नी एवं संतानः- श्रीमती रजनी नामदेव । कु.आकांक्षा एवं कु. अनुश्रुति
शिक्षा :-बी.एस.सी.(कृषि),एम.ए.(हिन्दी),पी.जी.डी.सी.ए.(कम्प्यूटर)
विधा :-कविता,ग़ज़ल,हायकू ,व्यंग्य,क्षणिका,लघुकथा,कहानी एंवं आलेख आदि।
प्रकाशन:- 1.अर्चना (कविता संग्रह,1997) 2.रजनीगंधा (हायकू संग्रह .008)
3-नौनी लगे बुदेली’ (विश्व में बुंदेली का पहला हाइकु संग्रह-2010)
4.राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह-2015द्ध 5ण्श्लुक लुक की बीमारी’(बुंदेली व्यंग्य संग्रह-2017द्ध
6ण्श्साहित्यिक वट वृक्ष’ (ई बुक) (गद्य व्यंग्य संग्रह-2018द्ध
7.‘सृजन’(संपादन) 8.आकांक्षा पत्रिका (संपादन 2002 से अब तकद्ध 9.‘संगम’ (संपादन) 10.अनुरोध (संपादन)
11.‘नागफनी का शहर (व्यग्ंय संकलन) 12.‘दीपमाला’(उपसंपादन) 13. जज़्बात(उपसंपादन)
14 ‘श्रोता सुमन’ (उपसंपादन) 15 पं. दुर्गाप्रसाद शर्मा अभिनंदन ग्रंथ (सह संपादन-2016)
एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग दो़ हज़ार रचनाओं का प्रकाशन, कवि-सम्मेलनांें एवं मुशायरों में शिर्कत।
अप्रकाशित:- ग्यारह अप्रकाशित संग्रह ।
संपादक:- ‘आंकाक्षा’ पत्रिका (सन् 2006 से आज तक)
प्रसारण :-ई टी.व्ही.,दूरदर्शन,सहारा म.प्र.,आकाशवाणी छतरपुर,केन्द्र से प्रसारण।
सम्मान :-16 प्रदेशांे से 80 साहित्यिक सम्मान प्राप्त। म.प्र. एवं उ.प्र. केे तीन महामहिम राज्यपालों द्वारा सम्मानित।
विशेष :-अब तक 260 साहित्यिक गोष्ठियों/कवि सम्मेलनो का सफल संयोजन/आयोजन। 70 देशो के ब्लाग पाठक
संप्रति :- संपादक- ‘आकांक्षा’ पत्रिका, अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ (सन् 2002 से आज तक)
अध्यक्ष- वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़, महामंत्री- अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं सस्ंकृति परिषद, टीकमगढ़
पता :-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,टीकमगढ़ (म.प्र.)पिनः472001
मोेबाइल :- 09893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
व्यग्ंय-‘‘बुढ़ापा और आनलाइन कवि सम्मेलन’
(राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’)
जब से यह लाॅकडाउन शुरू हुआ है तक से नए कवियों की संख्या टिड्डीदल की तरह बहुत बढ़ गयी है अब तो सोशल मीडिया से जुड़ा हर व्यक्ति ही अपने आप को कवि समझने लगा है और वो रोज ही कुछ न कुछ धड़क्के से पोस्ट कर रहा है। कुछ तो कट, कापी, पेस्ट में इतने माहिर है कि पता ही नहीं चलता की सबसे पहले पोस्ट किसने डाली थी और असली पोस्ट कौन सी है और इसके जन्मदाता मालिक कौन है जिन्होंने यह पोस्ट डाली थी एक ही पोस्ट का पोस्टमार्डम करके उसे हजारों लोग पोस्ट कर रहे है और मजेदार बात तो तब होती है कि जिसने सबसे पहले वह पोस्ट की थी वही पोस्ट उसके पास फिर से मेकप होकर ऐसे पेश आती है जैसे नई दुल्हन आ रही हो।
आजकल जब से कारोना वायरस के कारण लाकडाउन हुआ तभी से देश में बड़े-बड़े कवियों का भी भाव ‘डाउन’ हो गये हैं। पहले वे किसी को घास ही नहीं डालते थे बिना पैसे के कहीं आते-जाते और भूलकर भी मुफ्त में अपनी कविता नहीं सुनाते थे, लेकिन कहते है न कि सबके दिन फिरते है ठीक उसी तरह इनके भी दिन फिर गए या कह सकते है कि इनकेे दिनों पर पानी फिर गया है। ये तो वे ही अच्छी तरह से जान गए है कि अब उनके दाम नहीं रहे वे आम हो गए। अब वे रोज ही सोशल मीडिया पर कहीं भी आने के लिए बिलकुल मुफ्त में आने को तैयार है। लाइव आने के लिए ऐसे गिडगिड़ा रहे हैं कि मानों चार -छः महीने कविता नहीं सुनाऐंगे तो वे कविता सुनाना ही भूल जाएंगे। आज एकदम नए और पुराने सभी एक ही मंच पर खूब डूबते-उतराते दिख रहे है। आज एक मामूली से कवि या प्रकाशन,ग्रुप के फेसबुक पेज पर आने के लिए वरिष्ठ और ख्यातिप्राप्त कवि लार टपकाते फिर रहे है। मैंने एक दिन फेसबुक चलाते हुए देख कि एक ख्यातिप्राप्त कवि किसी साधारण छोटे शहर के मामूली से नौसिखिए कवि के फेसबुक पेज पर आधे घंटे से अपनी लाइव कविताएँ पैल रहे थे और आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसे मात्र दस-बारह लाइक और 20-25 लोग लाइव जुडे़ हुए थे कमेन्ट जरूर पचासक होगें, लेकिन उनकी सख्ंया भी इसलिए बढ़ जाती है कि कुछ अति उत्साही कवि जो अभी-अभी पैदा हुए है, वे उन्हें हर पंक्ति पर वाह-वाह अनेक वार लिख देते है। वे कवि इसी में नहीं भूले समाते कि चलों मुझे इतने सारे कमेन्टस मिले है तो निश्चित है कि इतने तो लोगों ने मुझे सुना ही है अच्छा इसमें भी कुछ लोग बहुत चतुर होते है वे लाइक करके एक-दो कमेन्ट्स करके वहाँ से खिसक लेते हैं।
आज जिस गति से देश में कोरोना के मरीज फैल रहे है ठीक उसी की दोगुनी गति से रोज आनलाइन कवि सम्मेलन हो रहे हैं। इन आनलाइन कवि सम्मेलनों की भी कुछ किस्में है। जैसे पहले किस्म का ‘आनलाइन कवि सम्मेलन’ वास्तव में आनलाइन ही होता है जिसमें विभिन्न ऐप जैसे जूम, ड्यू, वेबबेवस्क्स,व्हाटस्एप, गूगल आदि और भी रोज नए-नए ऐपों का जन्म हो रहा है इनके माध्यम से आनलाइन में शामिल होकर अपनी आत्मा को तृप्त कर लेते है इस प्रकार के माध्यम से पढ़े लिखे कवियों एवं खासकर अधिकारी, युवावर्ग आदि जो इन विभिन्न माध्यमों को अच्छी तरह चलाने में निपुण हो एवं आधुनिक तकनीक के परम ज्ञानी होते है वे इनका सही उपयोग करके स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हंै, कुठ में आठ कुठ में सोलह तो कुछ में पचास-सौ तक लोग एक साथ आनलाइन बैठकर कविता सुना सकते है, और एक-दूसरे के मुखड़े भी देख सकते है, लेकिन जो बूढ़े हो गए और जो मोबाइल में इतना ज्ञान नहीं रखते वे बेचारे इनके चर्चे सुनकर और दूसरे दिन सामाचार पत्रों के पढ़कर बहुत शर्मिंदा होते है तथा मन ही मन कुढ़ते भी लगते है। कुछ आत्मग्लानि से भर उठते है। उस समय उन्हें अपने वरिष्ठ होने पर भी अपनी दाल नहीं गल पाने का बहुत ही अफसोस होता है, तो वे ‘अंगूर खट्टे है’ मानकर अपने दिल को समझाने की हर बार कोशिश करते रहते है, लेकिन दिल तो पागल है कहाँ मानता है कुछ समय पश्चात फिर परेशान करने लगता है। और ये भी पागल होने की अंति स्टेज पर पहुँच जाते है।
ऐसे की परेशानी के क्षण में किसी वरिष्ठ कवि ने अपने प्रिय चेला की पहले तो खूब बढ़वाई की, उसकी कविताओं की स्तुति की और उसे भविष्य का बहुत बड़ा कवि बनने का दिवस्वप्न दिखाया जब वह उन सपनों में खो गया तो उसे अपनी उक्त व्यथा को बताया कि हम तो मछली से तड़फ रहे हैं किसी को कविता भी नहीं चुना पा रहे हैं अब तो घर वाले इन लाकडाउन के पचास दिन बाद एक सुर में लामबंद हो गए है वे कहते है कि भले ही आप कितना डाॅट दे लेकिन हम आपकी डाॅट तो सुन सकते है,लकिन हम आपकी कविता नहीं सुन सकते इतने दिनो में कान पक चुके है हमारे। अब हम क्या करे कुछ ऐसा उपाय करो कि हम भी इस आनलाइन कवि सम्मेलन में कविता सुनने और सुनाने का मजा ले सके।
चेला भी उनका पक्का चेला था वह अपनी झूठी प्रशंसा सुनकर ‘फूलकर गुप्पा’ हो गया। उसने अपना दिमाग लगाया और फिर आनलाइन कविसम्मेलन की एक नयी वेराइटी पैदा कर दी। ‘आनलाइन आडियों कवि सम्मेलन’ नाम दिया गया। जिसमें सभी कवियों की पहले से ही आॅडियो में तीन -चार चार मिनिट की उनकी आवाज में कविताएँ रिकार्ड करके कविताएँ मंगा लेते है और फिर उन्हें घोषित तारीख में व्हाट्सएप पर ग्रुप संचालक एडमिन उन सारे कवियों की एकत्रित आडियो क्लिप को क्रमशः उनके नाम या फोटो डालने के बाद डालते रहता है।
ठीक उसी तरह जैसे आकाशवाणी में कुछ दिन पहले से ही कार्यक्रम की आॅडियों रिकाडिंग हो जाती है और फिर प्रसारित कर दी जाती है इस नयी व्यवस्था से बुजुर्ग कवियों-शायरों में जैसे जान आ गयी हो, सभी लोग तुरंत कोरोना वायरस की भांति तेजी से सारे देश में विभिन्न गुपों में शामिल हो कर ‘एक्टिव’ होने लगे है और अपनी कविताओं का वायरस फैलाने में दिन-रात एक कर रहे है।
एक बार ऐसे ही शहर में एक कवि ने पहले किस्म के शुद्ध आनलाइन कवि सम्मेलन की देखादेखी स्वयं कराने की बहुत जोर-शोर से घोषणा अपने विभिन्न माध्यमों से कर दी सभी कवियों को आमंत्रित कर दिया सभी कविबन्धु निर्धारित समय पर उन्होंने पासवर्ड दिया था उसे लिख-लिख आनलाइन कवि सम्मेलन में उनसे जुड़ने के लिए तैयार हुए तो अति उत्साही कवि महोदय एप चलाना ही भूल गए वैसे भी वे इतने एक्सपर्ट नहीं थे,लेकिन मानते स्वयं को बहुत ज्यादा बडे़ वाले थे खैर कविसम्मेलन शुरू होने के निर्धारित समय से एक घंटे तक वे उस एप को चलाने के लिए अपने मोबाइल से छेड़खानी करते रहे लेकिन वह तो मानों किसी प्रेमिका की तरह रूठ ही गया था फिर क्या था सभी जुड़ने वाले कवियों के जब बार-बार मोबाइल आने लगे और जब इनसे कुछ करते नहीं बना तो आखिर में एक घंटे बाद इन्होंने अपने हथियार डाल दिया और कवियों से क्षमा माँगते हुए लाकडाउन और तकनीकी कारणों का बहाना लेते हुए कह दिया कि हम पुनः आपको सूचित करेगे आज ये कवि सम्मेलन स्थगित होता है। सभी आमंत्रित कवियों की उंगली की एक घंटे तक कसरत होने और उँगलियों में दर्द होने के बाद यह सूचना मिलते ही सभी ने उन्हें मन ही मन कम से कम सौ गालियों का प्रसाद चढ़ाते हुए उनके हाथ जोड़े और कहा धन्य है आप। वो तो वे उस समय वहाँ उपस्थित नहीं थे वर्ना कुछ तो उनके चरण पकड़ लेते आप जैसे महापुरूष भी है।
खैर, एक बार गल्ती हो जाये तो उसे लोग क्षमा कर देते है कि चलो बूढा है गलती तो सबसे हो जाती है, लेकिन फिर कुछ दिन बाद इनकी आत्मा कवि गोष्ठी कराने के लिए तडफ उठी चंूकि ये एक संस्था में अध्यक्ष भी है और फिर सामने वाली अन्य संस्था धड़ाधड़ आनलाइन कवि सम्मेलन करा रही है तो ये कैसे शांत रहते है। अब चूंकि पहली वाले प्रकार की के आनलाइन कवि सम्मेलन कराना इनके बस की बात नहीं थी बहुत बदनामी भी हुई थी इसलिए इन्होंने दूसरे तरह का आनलाइन आॅडियो कवि सम्मेलन कराने के लिए फिर जोर-शोर से घोषणा कर दी अति उत्साह में और स्वयं को बहुत ही होशियार समझने की गलतफहमी पालते हुए एक निश्चित समय पर सभी से आॅडियो क्लिप माँगाये गये।
लेकिन कहते है न, कि नकल में भी अकल लगती है, लेकिन इन की कहानी उस कौए जैसी हो गयी जो कि एक चिड़िया के पास घौसला बनाने की कला सीखने गया और बिना कुछ सीखे ही अति उत्साह में चिड़िया से बोला अरे आप रहने दो अब मैं घौंसला स्वयं बना लूंगा। बस तिनके की तो लाने पड़ते है और फिर आज तक वह कभी घांैसला बनाना नहीं सीख पाया। कौआ आज भी अपने अंडे कोयल के घौंसले में चुपके से रख आता है,पर इधर तो कोई घौसलों घुस ही नहीं सकता।
हम बता रहे थे इस बार फिर अतिउत्साह में बिना किसी ज्ञानी से सलाह लिए बिना आनन फानन में एक संस्था के नाम से एक नया ग्रुप बनाया उसी दिन सुबह जिस दिन कवि सम्मेलन था और मजेदार बात थी कि उसमें आधे कवियों को ही जोड़ पाये, आधे जोड़ना ही भूल गए और फिर उसी मोबाइल नंबर पर सभी के आॅडियो माँगा लिए, कवियों तो जैसे वे उपवासे बैठे हो तुरंत ही अपने-अपने आॅडियो डालने शुरू कर दिये,सभी लोग जो कि जुड़े थे वे भी एक दूसरे के आडियों सुनने लगे और मजा लेने लगे एक कवि को ये माजरा समझ में नहीं आया तो उन्होंने इन्हें मोबाइल करके बताया कि कविराज तुमने इसी मोबाइल नंबर पर सभी से आॅडियों क्यों मँगा लिए, तुम्हें अपने व्यक्तिगत या दूसरे मोबाइल नंबर पर आॅडियो मँगाने चाहिए थे,लेकिन इनकी समझ में कुछ नहीं आया जब तीन-चार कवियों ने यही बात कही तो इन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है किसी ज्ञानी से पूछा तो उसने हँसते हुए बतलाया कि आपने गलती तो फिर से इस बार भी कर ही दी है, तब उन्होंने फिर उस ग्रुप की तुरंत सेटिंग बदल कर ओनली एडमिन कर दी तब शेष कवियों कें आॅडियो आने बंद हो गये और फिर ज्ञानी से परम ज्ञान लेकर उसके अनुसार काम किया फिर स्वयं आॅडियो डालकर किसी तरह यह आनलाइन ‘आडियो कवि सम्मेलन’ कराकर ऐसा अनुभव किया जैसे कोई युद्ध जीत लिया हो, या गंगा नहा लिए हो, लेकिन इन दोनों प्रकार के आन लाइन कवि सम्मेलन कराने के किस्से जब अन्य कवियों ने सुना तो बहुत देर तक हँसते रहे और इस कोरोना वायरस के भय के कुछ समय के लिए मुक्त होकर उन्मुक्त होकर मुस्कुराते रहे और मन ही मन सोचते रहे कि कहीं इन्हें भी ‘कवि कोरोना’ वायरस तो नहीं हो गया इसलिए अब लोग इनसे दूर होने लगे है इनसे और इनसे कटने लगे है।
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)भारत
पिन-472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
मौलिकता प्रमाण पत्रः-
प्रमाणित किया जाता है कि मेरी उपरोक्त व्यंग्य ‘बुढ़ापा और आनलाइन कवि सम्मेलन की बाढ़’ व्यंग्य’’ मौलिक एवं स्वरचित है।
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
पिनः472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
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.कवि परिचय-
नाम :-राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’
जन्म :-15.06.1972 (लिधौरा)
माता-पिताः- श्रीमती मिथलेश,श्री सी.एल.नामदेव
पत्नी एवं संतानः- श्रीमती रजनी नामदेव । कु.आकांक्षा एवं कु. अनुश्रुति
शिक्षा :-बी.एस.सी.(कृषि),एम.ए.(हिन्दी),पी.जी.डी.सी.ए.(कम्प्यूटर)
विधा :-कविता,ग़ज़ल,हायकू ,व्यंग्य,क्षणिका,लघुकथा,कहानी एंवं आलेख आदि।
प्रकाशन:- 1.अर्चना (कविता संग्रह,1997) 2.रजनीगंधा (हायकू संग्रह .008)
3-नौनी लगे बुदेली’ (विश्व में बुंदेली का पहला हाइकु संग्रह-2010)
4.राना का नज़राना (ग़ज़ल संग्रह-2015द्ध 5ण्श्लुक लुक की बीमारी’(बुंदेली व्यंग्य संग्रह-2017द्ध
6ण्श्साहित्यिक वट वृक्ष’ (ई बुक) (गद्य व्यंग्य संग्रह-2018द्ध
7.‘सृजन’(संपादन) 8.आकांक्षा पत्रिका (संपादन 2002 से अब तकद्ध 9.‘संगम’ (संपादन) 10.अनुरोध (संपादन)
11.‘नागफनी का शहर (व्यग्ंय संकलन) 12.‘दीपमाला’(उपसंपादन) 13. जज़्बात(उपसंपादन)
14 ‘श्रोता सुमन’ (उपसंपादन) 15 पं. दुर्गाप्रसाद शर्मा अभिनंदन ग्रंथ (सह संपादन-2016)
एवं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में लगभग दो़ हज़ार रचनाओं का प्रकाशन, कवि-सम्मेलनांें एवं मुशायरों में शिर्कत।
अप्रकाशित:- ग्यारह अप्रकाशित संग्रह ।
संपादक:- ‘आंकाक्षा’ पत्रिका (सन् 2006 से आज तक)
प्रसारण :-ई टी.व्ही.,दूरदर्शन,सहारा म.प्र.,आकाशवाणी छतरपुर,केन्द्र से प्रसारण।
सम्मान :-16 प्रदेशांे से 80 साहित्यिक सम्मान प्राप्त। म.प्र. एवं उ.प्र. केे तीन महामहिम राज्यपालों द्वारा सम्मानित।
विशेष :-अब तक 260 साहित्यिक गोष्ठियों/कवि सम्मेलनो का सफल संयोजन/आयोजन। 70 देशो के ब्लाग पाठक
संप्रति :- संपादक- ‘आकांक्षा’ पत्रिका, अध्यक्ष म.प्र. लेखक संघ टीकमगढ़ (सन् 2002 से आज तक)
अध्यक्ष- वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़, महामंत्री- अ.भा.बुन्देलखण्ड साहित्य एवं सस्ंकृति परिषद, टीकमगढ़
पता :-नई चर्च के पीछे,शिवनगर कालौनी,कुंवरपुरा रोड,टीकमगढ़ (म.प्र.)पिनः472001
मोेबाइल :- 09893520965
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व्यग्ंय-‘‘बुढ़ापा और आनलाइन कवि सम्मेलन’
(राजीव नामदेव ‘‘राना लिधौरी’’)
जब से यह लाॅकडाउन शुरू हुआ है तक से नए कवियों की संख्या टिड्डीदल की तरह बहुत बढ़ गयी है अब तो सोशल मीडिया से जुड़ा हर व्यक्ति ही अपने आप को कवि समझने लगा है और वो रोज ही कुछ न कुछ धड़क्के से पोस्ट कर रहा है। कुछ तो कट, कापी, पेस्ट में इतने माहिर है कि पता ही नहीं चलता की सबसे पहले पोस्ट किसने डाली थी और असली पोस्ट कौन सी है और इसके जन्मदाता मालिक कौन है जिन्होंने यह पोस्ट डाली थी एक ही पोस्ट का पोस्टमार्डम करके उसे हजारों लोग पोस्ट कर रहे है और मजेदार बात तो तब होती है कि जिसने सबसे पहले वह पोस्ट की थी वही पोस्ट उसके पास फिर से मेकप होकर ऐसे पेश आती है जैसे नई दुल्हन आ रही हो।
आजकल जब से कारोना वायरस के कारण लाकडाउन हुआ तभी से देश में बड़े-बड़े कवियों का भी भाव ‘डाउन’ हो गये हैं। पहले वे किसी को घास ही नहीं डालते थे बिना पैसे के कहीं आते-जाते और भूलकर भी मुफ्त में अपनी कविता नहीं सुनाते थे, लेकिन कहते है न कि सबके दिन फिरते है ठीक उसी तरह इनके भी दिन फिर गए या कह सकते है कि इनकेे दिनों पर पानी फिर गया है। ये तो वे ही अच्छी तरह से जान गए है कि अब उनके दाम नहीं रहे वे आम हो गए। अब वे रोज ही सोशल मीडिया पर कहीं भी आने के लिए बिलकुल मुफ्त में आने को तैयार है। लाइव आने के लिए ऐसे गिडगिड़ा रहे हैं कि मानों चार -छः महीने कविता नहीं सुनाऐंगे तो वे कविता सुनाना ही भूल जाएंगे। आज एकदम नए और पुराने सभी एक ही मंच पर खूब डूबते-उतराते दिख रहे है। आज एक मामूली से कवि या प्रकाशन,ग्रुप के फेसबुक पेज पर आने के लिए वरिष्ठ और ख्यातिप्राप्त कवि लार टपकाते फिर रहे है। मैंने एक दिन फेसबुक चलाते हुए देख कि एक ख्यातिप्राप्त कवि किसी साधारण छोटे शहर के मामूली से नौसिखिए कवि के फेसबुक पेज पर आधे घंटे से अपनी लाइव कविताएँ पैल रहे थे और आश्चर्य की बात तो यह थी कि उसे मात्र दस-बारह लाइक और 20-25 लोग लाइव जुडे़ हुए थे कमेन्ट जरूर पचासक होगें, लेकिन उनकी सख्ंया भी इसलिए बढ़ जाती है कि कुछ अति उत्साही कवि जो अभी-अभी पैदा हुए है, वे उन्हें हर पंक्ति पर वाह-वाह अनेक वार लिख देते है। वे कवि इसी में नहीं भूले समाते कि चलों मुझे इतने सारे कमेन्टस मिले है तो निश्चित है कि इतने तो लोगों ने मुझे सुना ही है अच्छा इसमें भी कुछ लोग बहुत चतुर होते है वे लाइक करके एक-दो कमेन्ट्स करके वहाँ से खिसक लेते हैं।
आज जिस गति से देश में कोरोना के मरीज फैल रहे है ठीक उसी की दोगुनी गति से रोज आनलाइन कवि सम्मेलन हो रहे हैं। इन आनलाइन कवि सम्मेलनों की भी कुछ किस्में है। जैसे पहले किस्म का ‘आनलाइन कवि सम्मेलन’ वास्तव में आनलाइन ही होता है जिसमें विभिन्न ऐप जैसे जूम, ड्यू, वेबबेवस्क्स,व्हाटस्एप, गूगल आदि और भी रोज नए-नए ऐपों का जन्म हो रहा है इनके माध्यम से आनलाइन में शामिल होकर अपनी आत्मा को तृप्त कर लेते है इस प्रकार के माध्यम से पढ़े लिखे कवियों एवं खासकर अधिकारी, युवावर्ग आदि जो इन विभिन्न माध्यमों को अच्छी तरह चलाने में निपुण हो एवं आधुनिक तकनीक के परम ज्ञानी होते है वे इनका सही उपयोग करके स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हंै, कुठ में आठ कुठ में सोलह तो कुछ में पचास-सौ तक लोग एक साथ आनलाइन बैठकर कविता सुना सकते है, और एक-दूसरे के मुखड़े भी देख सकते है, लेकिन जो बूढ़े हो गए और जो मोबाइल में इतना ज्ञान नहीं रखते वे बेचारे इनके चर्चे सुनकर और दूसरे दिन सामाचार पत्रों के पढ़कर बहुत शर्मिंदा होते है तथा मन ही मन कुढ़ते भी लगते है। कुछ आत्मग्लानि से भर उठते है। उस समय उन्हें अपने वरिष्ठ होने पर भी अपनी दाल नहीं गल पाने का बहुत ही अफसोस होता है, तो वे ‘अंगूर खट्टे है’ मानकर अपने दिल को समझाने की हर बार कोशिश करते रहते है, लेकिन दिल तो पागल है कहाँ मानता है कुछ समय पश्चात फिर परेशान करने लगता है। और ये भी पागल होने की अंति स्टेज पर पहुँच जाते है।
ऐसे की परेशानी के क्षण में किसी वरिष्ठ कवि ने अपने प्रिय चेला की पहले तो खूब बढ़वाई की, उसकी कविताओं की स्तुति की और उसे भविष्य का बहुत बड़ा कवि बनने का दिवस्वप्न दिखाया जब वह उन सपनों में खो गया तो उसे अपनी उक्त व्यथा को बताया कि हम तो मछली से तड़फ रहे हैं किसी को कविता भी नहीं चुना पा रहे हैं अब तो घर वाले इन लाकडाउन के पचास दिन बाद एक सुर में लामबंद हो गए है वे कहते है कि भले ही आप कितना डाॅट दे लेकिन हम आपकी डाॅट तो सुन सकते है,लकिन हम आपकी कविता नहीं सुन सकते इतने दिनो में कान पक चुके है हमारे। अब हम क्या करे कुछ ऐसा उपाय करो कि हम भी इस आनलाइन कवि सम्मेलन में कविता सुनने और सुनाने का मजा ले सके।
चेला भी उनका पक्का चेला था वह अपनी झूठी प्रशंसा सुनकर ‘फूलकर गुप्पा’ हो गया। उसने अपना दिमाग लगाया और फिर आनलाइन कविसम्मेलन की एक नयी वेराइटी पैदा कर दी। ‘आनलाइन आडियों कवि सम्मेलन’ नाम दिया गया। जिसमें सभी कवियों की पहले से ही आॅडियो में तीन -चार चार मिनिट की उनकी आवाज में कविताएँ रिकार्ड करके कविताएँ मंगा लेते है और फिर उन्हें घोषित तारीख में व्हाट्सएप पर ग्रुप संचालक एडमिन उन सारे कवियों की एकत्रित आडियो क्लिप को क्रमशः उनके नाम या फोटो डालने के बाद डालते रहता है।
ठीक उसी तरह जैसे आकाशवाणी में कुछ दिन पहले से ही कार्यक्रम की आॅडियों रिकाडिंग हो जाती है और फिर प्रसारित कर दी जाती है इस नयी व्यवस्था से बुजुर्ग कवियों-शायरों में जैसे जान आ गयी हो, सभी लोग तुरंत कोरोना वायरस की भांति तेजी से सारे देश में विभिन्न गुपों में शामिल हो कर ‘एक्टिव’ होने लगे है और अपनी कविताओं का वायरस फैलाने में दिन-रात एक कर रहे है।
एक बार ऐसे ही शहर में एक कवि ने पहले किस्म के शुद्ध आनलाइन कवि सम्मेलन की देखादेखी स्वयं कराने की बहुत जोर-शोर से घोषणा अपने विभिन्न माध्यमों से कर दी सभी कवियों को आमंत्रित कर दिया सभी कविबन्धु निर्धारित समय पर उन्होंने पासवर्ड दिया था उसे लिख-लिख आनलाइन कवि सम्मेलन में उनसे जुड़ने के लिए तैयार हुए तो अति उत्साही कवि महोदय एप चलाना ही भूल गए वैसे भी वे इतने एक्सपर्ट नहीं थे,लेकिन मानते स्वयं को बहुत ज्यादा बडे़ वाले थे खैर कविसम्मेलन शुरू होने के निर्धारित समय से एक घंटे तक वे उस एप को चलाने के लिए अपने मोबाइल से छेड़खानी करते रहे लेकिन वह तो मानों किसी प्रेमिका की तरह रूठ ही गया था फिर क्या था सभी जुड़ने वाले कवियों के जब बार-बार मोबाइल आने लगे और जब इनसे कुछ करते नहीं बना तो आखिर में एक घंटे बाद इन्होंने अपने हथियार डाल दिया और कवियों से क्षमा माँगते हुए लाकडाउन और तकनीकी कारणों का बहाना लेते हुए कह दिया कि हम पुनः आपको सूचित करेगे आज ये कवि सम्मेलन स्थगित होता है। सभी आमंत्रित कवियों की उंगली की एक घंटे तक कसरत होने और उँगलियों में दर्द होने के बाद यह सूचना मिलते ही सभी ने उन्हें मन ही मन कम से कम सौ गालियों का प्रसाद चढ़ाते हुए उनके हाथ जोड़े और कहा धन्य है आप। वो तो वे उस समय वहाँ उपस्थित नहीं थे वर्ना कुछ तो उनके चरण पकड़ लेते आप जैसे महापुरूष भी है।
खैर, एक बार गल्ती हो जाये तो उसे लोग क्षमा कर देते है कि चलो बूढा है गलती तो सबसे हो जाती है, लेकिन फिर कुछ दिन बाद इनकी आत्मा कवि गोष्ठी कराने के लिए तडफ उठी चंूकि ये एक संस्था में अध्यक्ष भी है और फिर सामने वाली अन्य संस्था धड़ाधड़ आनलाइन कवि सम्मेलन करा रही है तो ये कैसे शांत रहते है। अब चूंकि पहली वाले प्रकार की के आनलाइन कवि सम्मेलन कराना इनके बस की बात नहीं थी बहुत बदनामी भी हुई थी इसलिए इन्होंने दूसरे तरह का आनलाइन आॅडियो कवि सम्मेलन कराने के लिए फिर जोर-शोर से घोषणा कर दी अति उत्साह में और स्वयं को बहुत ही होशियार समझने की गलतफहमी पालते हुए एक निश्चित समय पर सभी से आॅडियो क्लिप माँगाये गये।
लेकिन कहते है न, कि नकल में भी अकल लगती है, लेकिन इन की कहानी उस कौए जैसी हो गयी जो कि एक चिड़िया के पास घौसला बनाने की कला सीखने गया और बिना कुछ सीखे ही अति उत्साह में चिड़िया से बोला अरे आप रहने दो अब मैं घौंसला स्वयं बना लूंगा। बस तिनके की तो लाने पड़ते है और फिर आज तक वह कभी घांैसला बनाना नहीं सीख पाया। कौआ आज भी अपने अंडे कोयल के घौंसले में चुपके से रख आता है,पर इधर तो कोई घौसलों घुस ही नहीं सकता।
हम बता रहे थे इस बार फिर अतिउत्साह में बिना किसी ज्ञानी से सलाह लिए बिना आनन फानन में एक संस्था के नाम से एक नया ग्रुप बनाया उसी दिन सुबह जिस दिन कवि सम्मेलन था और मजेदार बात थी कि उसमें आधे कवियों को ही जोड़ पाये, आधे जोड़ना ही भूल गए और फिर उसी मोबाइल नंबर पर सभी के आॅडियो माँगा लिए, कवियों तो जैसे वे उपवासे बैठे हो तुरंत ही अपने-अपने आॅडियो डालने शुरू कर दिये,सभी लोग जो कि जुड़े थे वे भी एक दूसरे के आडियों सुनने लगे और मजा लेने लगे एक कवि को ये माजरा समझ में नहीं आया तो उन्होंने इन्हें मोबाइल करके बताया कि कविराज तुमने इसी मोबाइल नंबर पर सभी से आॅडियों क्यों मँगा लिए, तुम्हें अपने व्यक्तिगत या दूसरे मोबाइल नंबर पर आॅडियो मँगाने चाहिए थे,लेकिन इनकी समझ में कुछ नहीं आया जब तीन-चार कवियों ने यही बात कही तो इन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है किसी ज्ञानी से पूछा तो उसने हँसते हुए बतलाया कि आपने गलती तो फिर से इस बार भी कर ही दी है, तब उन्होंने फिर उस ग्रुप की तुरंत सेटिंग बदल कर ओनली एडमिन कर दी तब शेष कवियों कें आॅडियो आने बंद हो गये और फिर ज्ञानी से परम ज्ञान लेकर उसके अनुसार काम किया फिर स्वयं आॅडियो डालकर किसी तरह यह आनलाइन ‘आडियो कवि सम्मेलन’ कराकर ऐसा अनुभव किया जैसे कोई युद्ध जीत लिया हो, या गंगा नहा लिए हो, लेकिन इन दोनों प्रकार के आन लाइन कवि सम्मेलन कराने के किस्से जब अन्य कवियों ने सुना तो बहुत देर तक हँसते रहे और इस कोरोना वायरस के भय के कुछ समय के लिए मुक्त होकर उन्मुक्त होकर मुस्कुराते रहे और मन ही मन सोचते रहे कि कहीं इन्हें भी ‘कवि कोरोना’ वायरस तो नहीं हो गया इसलिए अब लोग इनसे दूर होने लगे है इनसे और इनसे कटने लगे है।
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)भारत
पिन-472001 मोबाइल-9893520965
E Mail- ranalidhori@gmail.com
Blog - rajeevranalidhori.blogspot.com
मौलिकता प्रमाण पत्रः-
प्रमाणित किया जाता है कि मेरी उपरोक्त व्यंग्य ‘बुढ़ापा और आनलाइन कवि सम्मेलन की बाढ़’ व्यंग्य’’ मौलिक एवं स्वरचित है।
राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक ‘आकांक्षा’ पत्रिका
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