गुरुवार, 21 नवंबर 2013

बुन्देलखण्ड कौं पैलौ 'आनलाइन पुस्तकालय-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी

        बुन्देलखण्ड कौं पैलौ 'आनलाइन पुस्तकालय-
                                                (आलेख-राजीव नामदेव 'राना लिधौरी)
           
            बुन्देलखण्ड़ ऊसे तौ भौत पिछड़ों भओ है पे कछु बातन में जौ सबसे अगाऊ सोर्इ है जैसे कि अपनौ टीकमगढ़ जिले कौ सरकारी पुस्तकालय। जौ पुस्तकालय पिरदेश भरै में नर्इ तौ बुन्देलखण्ड़ कौ तो पैलो आन लाइन पुस्तकालय है। इतै के लाइबे्ररियन होशंगाबाद में जन्मे श्री विजय कुमार जी मेहरा है जौ कि भौत साहित्य पै्रमी है उने पुस्तकन से इतैक जादा पै्रम है कि उनने जौ पुस्तकालय अकेले अपने दम पे र्इ पुस्तकालय में धरी लगभग पन्द्रह हजार पुस्कतन की सूची तैयार कर लर्इ है और बाकी कौ तैयार करबे में लगे है। र्इके लाने उनने अपने पइसा से एक लेपटाप खरीदो  और दो साल से मेहनत करके सबरौ पुस्तकालय हाइटेक कर लओ।  अब पुस्तक पढ़वे वारन खौं उनकी पसंद की पुस्कत एक किलक दबाउतन ही मिल जात।  अब उने ढूँढ़ने नर्इ परत,झटटर्इ से पुस्तकन कौ नम्बर मिल जात है।
            र्इ पुस्तकालय के बारे में टीकमगढ़ के श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद टीकमगढ़ के अध्यक्ष साहित्यकार पं. हरिविष्णु  अवस्थी जू ने हमें एैसो बताऔ है कि जौ पुस्तकालय भौत पुरानो राजशाही जमाने कौ सन 1930 कौ है। पैला इते के महाराजा वीर सिंह भौत साहित्य पे्रमी हते उनने सन 1930 में श्री वीरेन्द्र केशव साहित्य परिषद ,'देवेन्द्र पुस्तकालय की  स्थापना करीती। सन-1955 में र्इ पुस्तकालय कौ म.प्र.शासन कौ सौप दओ गओ उर र्इ की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग कौ दर्इ गर्इ। तब से अबे लौ जो पुस्तकालय शिक्षा विभाग की देखरेख में चलरओ है।
            वैसे तो सालभरे में र्इ पुस्तकालय के रखरखाव के लाने पेलऊ पन्द्रह हजार रूपए वार्षिक मिलरय पै कछु सालन से बेर्इ नर्इ मिल रय। तोर्इ अपनी धुन के पक्के श्री मेहरा जू, जी जान से र्इ पुस्तकालय कौ सजावें-सवाँरवे में लगे है ,पे अपनौ तन,मन,धन सबर्इ र्इ पुस्तकालय कौ दे रये है।
            र्इ पुस्तकालय में लगभग बीस हजार पुस्तकें है, इनमें भौत सारी हस्तलिखित पुस्तकें जौन संस्कृत भाषा में लिखी भर्इ है सोर्इ है जौ कि साहित्य कि धरोहर के रूप में धरी हैंं। राजा राम मोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान कोलकाता से प्राप्त लगभग दस हजार पुस्तकें उर लोक शिक्षण संचानालय भोपाल म.प्र. द्वारा प्रदत्त लगभग एक हजार। स्थानीय साहित्यकारों की लगभग सौ से अधिक पुस्तकें इस पुस्तकालय की शोभा बढ़ा रही है। कम जगह होने पे भी करीने से रखी पुस्तकें प्रत्येक अलमारी पर नम्बर व केटलाग दओ गओ हेै कुल मिला कर जो पुस्तकालय बहुत ही आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।
श्री मेहरा जी ने हमें बताओं है कि र्इ पुस्तकालय के लगभग तेरह सौ आजीवन सदस्य तथा 300 सदस्य अस्थार्इ रूप से है। लगभग साठ पाठक इतै पुस्तकें लेवें व समाचार-पत्र पढवें रोजर्इ आत रत है।
            इतनौर्इ नर्इ अपने पइसा से इंटरनेट कनेक्शन नेटसेटर के माध्यम से इंटरनेट सेवा करवा लओ, र्इ की मदद से वे पाठखन कौ पुस्तकौं को ढूँढ़ने व ऊ से संबधित जानकारी उपलब्ध करा देत हैं। वो भी मुफत में । र्इकै लाने उससे कोनऊ शुल्क नर्इ लओ जात है, बिल्कुल नि:शुल्क है। पाठकों कौ मात्र र्इ पुस्तकालय कौ सदस्य बनने पड़त है। जी की सदस्यता शुल्क मात्र सौ रूपए हेै तथा दो रूपए कौ फार्म भर कै कौनऊ भी र्इ कौ सदस्य बन सकत है। जै रूइया भी अमानत के रूप में लये जात है जो कि सदस्यता वापिस लेने या खतम करने पर वापिस मिल जात है।                                                              
        श्री विजय कुमार मेहरा जी की मंशा है कि र्इ पुस्तकालय की एक बेबसाइट बन जाये तो और नोनो रहे पै र्इ कै लाने लगभग बीस हजार रूपइया चाने हैं। कोनऊ सरकारी राशि व मदद न मिलने के कारण अभी इनकी इच्छा अधूरी है लेकिन उनके हौंसले बुलंद है तभी तौ वे शांत नर्इ बैठे है अपने निजी संसाधनो का उपयोग करके तथा मेहरा जी ने स्वयं पुस्तकों की सूची एवं डाटा अपने स्वयं के लेपटाप पै फीड करो है जौ सबरौ डाटा एम.एस.आफिस प्रोग्राम की एक्सल सीट पै बनाओ गओ है र्इ में पुस्तकन कौ नाव,ऊके लेखक कौ नाव, मूल्य,छपवें को सन,पेजन की संख्या व पुस्तक की विषय वस्तु आदि जानकारी दर्इ गयी।
            पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की सूची की सोशल साइट फेसबुक पर आनलाइन  भी करो गओ है र्इके लाने फेसबुक पे डिस्ट्रक्ट लाइबे्ररी टीकमगढ़  ;क्पेजतपबज सपइतंतल जपांउहंजीद्ध कौ एक पेज बनाओ गओ है जीमे जिला पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की सूची तक पहुँचने के लिए एक लिंक डाला गया है। इस लिंक पे किलक करत ही जिला पुस्तकालय में उपलब्ध पुस्तकों की सबरी जानकारी मिल जात है।
            श्री मेहरा जी की साहितियक रूचि का एक और उदाहरण जौ है कि र्इ पुस्तकालय में नगर की सर्वाधिक सक्रिय साहितियक संस्था म.प्र. लेखक संघ अपनी साहितियक गोषिठयाँ हर मइना के आखिरी रविवार कौ आयोजित करत है जीमे नगर के साहित्यकार एक साथ बैठ कर साहित्य का चिंतन व नव सृजन करते है। र्इ काम में श्री मेहरा जी की मदद करवें के लाने श्री परमेश्वरी दास तिवारी जु एवं म.प्र. लेखक संघ के जिलाध्यक्ष व साहित्यकार राजीव नामदेव'राना लिधौरीसोर्इ उनके संगे लगेरात है।
            श्री मेहरा जी कौ साहित्य व पुस्तक प्रेम कौ देख के नगर की परसिद्ध साहितियक संस्था 'म.प्र. लेखक संघ की जिला इकार्इ टीकमगढ़ के अध्यक्ष राजीव नामदेव 'राना लिधौरी ने इने 'म.प्र. लेखक संघ की 162 वीं गोष्ठी में दिनांक 21 जुलार्इ सन-2012 कौ 'आकांक्षा पत्रिका का विमोचन एवं सम्मान समारोह के सुअवसर पै 'साहित्य सौरभ सम्मान-2012 एवं शाल श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित सोर्इ करो हतो।
            र्इ तरहा से जौ पुस्तकालय कम संसाधनों व सीमित स्थान में भी सर्इ माइने में साहित्य की अमूल्य सेवा कर रओ है। र्इकौं सजावे व सवारवें वारे और तन,मन,धन से लगे साहित्य प्रेमी श्री विजय कुमार जी मेहरा जू कौ हम भौत-भौत धन्यवाद देत है।

    -राजीव नामदेव 'राना लिधौरी
        संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
       अध्यक्ष-म.प्र लेखक संघ,टीकमगढ़
      शिवनगर कालौनी,टीकमगढ़ (म.प्र.)
       पिन:472001 मोबाइल-9893520965
       E Mail-   ranalidhori@gmail.com
     Blog - rajeevrana lidhori.blogspot.com

   

बुन्देली व्यग्ंय-''लुकलुक की बीमारी -राजीव नामदेव''राना लिधौरी,टीकमगढ़

बुन्देली व्यग्ंय-''लुकलुक की बीमारी
                                -राजीव नामदेव''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)

                हमाये इतै कछु दिनन से नये-नये कवि पैदा भये पैला से वे कवितार्इ नर्इ करतते पर जब सै सरकार ने उनै रिडायर्ड करदऔ तबसै वे सठिया गये और 'सरतारौ बानिया का करे की कानात को अपनारये हते, सौ कोनऊ ने उनसे कै दर्इ कि कवि बन जाओ सौ उनने कर्इ कि कवि तो जन्मजात होत है ऐसे कैसे बन जात है? उनने कर्इ आजकाल तौ सबर्इ जने कवि बन जात है। वे ठलुआ तो हो गये हते सो उन्ने कोशिस करी तो कछु इतार्इ कि कछु उतार्इ की जोर-तोर के चार छ: कवितायें बना डारी और कवि बन गये बार सफेद हते, उन्ना सोर्इ सफेद पैर लये तना सी दाढ़ी घर लर्इ, लो बन गये कवि। अब उने झटटर्इ अपनौ नाव कवियन में करवै की लुकी लुकी भर्इ, जा एक भौत बुरर्इ नर्इ बीमारी पर गयी जौ उनखौ पीछो अबे लौ नर्इ छोर रर्इ। अब शहर में कितऊ भी कोनऊ साहितियक पिरोगराम या कवि सम्मेलन हुये जै साहब उतै जरूर पौच जेहे। उन्हें पैचानवे में कोनऊ परेशानी नर्इ होत है, काइसै कै जै उतर्इ मंच कै ऐंगरें ही लुकलुकात फिरत है। कछु नर्इ तो तनक -तनक देर में मंच पै पौच कै मइक ठीक करन लगत है ऐसे लगत जैसे जै पिछले जनम में माइक सुधारवे के स्पेशलिष्ट भये हुये।
                एक बैर का भओ कि शहर में एक बुन्देली पै कवि सम्मेलन हतौ अब ये लुक-लुक साब तौ बुन्देली में तनकऊ नर्इ लिख पातते, सौ उनकीे इतै कविता पढवै की दार नर्इ गलने हती, पर का करै, मजबूरी हती सौ जै सबसे पैला की लाइन में जगां अगेज कै सबसे पैला कुर्सी पै धररये। अब साब कवि सम्मेलन चालू भओ, सो जो इनै लुकलुक की बीमारी हती ऊकौ कीरा गुलबुलान लगौ सो इनै कछु न सूजी, जै उतर्इ से एक पैरे से पैराओ भओ गजरा ढूंढ लाये और मंच पै चढ कै ऊ समय जौन कवि पढ़ रओ हतो उखौ पैरा दओ, और तारी बजान लगे जैसे कछु जग्ग जीत लओ हो,सौ कछु लोगन ने उनके देखादेखी सोर्इ तारी बजा दर्इ। अब इनकी लुकलुकी तनक कम भर्इ सो जै अपनी जागा पै आकै बैठ गयें। आदा घंटे बाद इनै फिरकै लुकलुकी उठी, सौ जै फिरकै कऊ से एक गजरा ढूंढ कै लाये और मंच पै जान लगे, सौ पछार्इ बैठे श्रोताओं में से कोनऊ ने जोर से कर्इ -जौ कौ बब्बा अय। जौ भार्इ लुकलुकात फिररऔ, सौ बगल बारे ने कर्इ सठिया गओ है दूसरे नै कर्इ इतर्इ कौ नओ-नओ कवि बनो है सौ आज र्इखौ पढवे नर्इ मिल रओ, सो फरफरात फिर रओ और  गजरा डार -डार कै अपनौ मन भर रओ, एर्इ बहाने से मंच पे जावे की लुकलुकी शांत कररओ। एकाद बेर फोटो सोर्इ खिंच जात सौ जै ऊखौं मडवा कै अपने इतै घरे टांग लेत है और कत फिरत है कि हमने ऊके संगे कविता पडी हती वे तो हमाये मित्र है। अब फोटो देखवे वारे कौ का पतौ कि जा फोटो कैसे खिांची हती। जो बब्बा हर कवि सम्मेलन में जोर्इ नौटंकी करत है हम तौ कर्इ बेर देख चुके है। सबरै सुनवे वारे इन्हैं चीनन लगे है लगत है तुम नये आये हो? एर्इ से तुमै नर्इ मालूम।
                इन साब की लुकलुक की बीमारी खौ देख के शहर भर के कवियन ने इनकौ नाव 'लुकलुक कवि धर दओ। अब इन मैं एक विदया तो जन्मजात हती सौ ऊकी दम पै और नैतन की चमचयार्इ करकै इतै उतै की बातें बानकै नेतन के हात पाव जोर कै कैसै भी पैसा ऐठ कै एकाध कवि गोष्ठी अपने घरे करा लर्इ और उन्हीं नेतन खौ शाल श्रीफल सै सम्मान करदओ। शहर भर कै नेतन खौ सम्मान करकै जै अफरै नइयाँ सौ अब उनखै चमचन खौ सोर्इ सम्मान करत जा रये। अब इतै जा सोसवे बारी बात है कि साहितियक गोष्ठी में नेतन कौ सम्मान करवै की का तुक है वे कुन अटल बिहारी है कि कवि  है। जे तो साहित्य कौ 'हींग कौ घगा तो जानत नर्इया और सम्मानित हो रये,जै तो बोर्इ बात हो गर्इ कि मूरखन कै राज मैं 'गधा पजीरी खा रये, लेकिन का करै चमचयार्इ में जो सब तो करनै पडत है। अबे तक तो जा कानात सुनी ती कि 'मुसीबत में गधे को बाप बनालओ जात है पर अब तो पैसन के लाने जी चाये खौ कछु भी बनालो।
अबे तक तो साहित्यकार इन सबसे दूर रततै। साहित्यकारन खौ जो सब नोनो नर्इ लगत है,साहित्यकारन की तौ स्वाभिमान,इज्जत एवं प्रशंसा ही पूंजी रत है। साहित्यकार खौ मतलब होत है जो सबको हित करे वही साहित्यकार होत है जो नर्इ कि केवल अपनौ हित साध लओ। नेतन की चमचयार्इ और लुकलुक करवों अपुन साहित्यकारन कौ नोनो लर्इ लगत है पर का करै जमानौ सोर्इ बदल रओ है। झटटर्इ परसिधी पावे खौ जो शोर्टकट रास्तो है। कछुन ने र्इखौं अपना लओ है।
                अब लुकलुक साब खौ दो तीन साल कवितार्इ करत भये हो गये सो उनने कवियन की कविता पढवे की नकल,मंच की अदाये सीख लर्इ वे अब कवियन में गिने जाने लगे और स्वयं खौ शहर खौ सबसे बड़ो कवि मानन लगे। वे अपने लुकलुकावे को कोनउ मौका हात से नर्इ जान देत है। शहर में जब कभउ कौनउ भी कवि सम्मेलन होत है और ऊ में कोनउ नओ कवि शहर में आवो तो वे एक डायरी लेके ऊखै इतै पौंच कै ऊखों नाव पतौ और मोबाइल नंबर जरूर लिख लेत है और उये जब तक पेरत रत है जब तक कि वौ इने अपने इते एक वेर नर्इ बुला लेत है। दौबारा उतै जावे की नौबत नर्इ आत है। वे जान जात है कि जै कितै बडे वारे है।
                वे अब जब भी मंच पै जात है तो एक दो नर्इ से उनकी लुकलुकी नर्इ जात कम सेे कम छ:सात कविताये तो फटकार आत है संचालक महोदय इनसे बैठवै की बिनती करत-करत थक कै गम्म खाकै बैेठ जात। यदि जै कभऊ कोनउ गोष्ठी कौ सचांलन कर रये तौ फिर उनसे भगवान भी नर्इ बचा सकत है लुकलुक साब कि कछु कवितायें तो गोल्डन जुबली मना चुकी है फिर भी जै बडे शान से ऊ कविता खौ ऐसे सुनात जैसे पैली बेर सुना रये हो।
                उनकी देखादेखी कछु कवियन खौ सोर्इ जा लुकलुक की बीमारी लगगर्इ है। सौ भइया इनर्इ जैसन लुकलुकन की लुकलुकी कम करवै के लाने जौ व्युंग्य लिखौ भओ है। अब का करे जैसै कंपूटर में बाइयरस आ जात है बैसे अब साहित्य में सोर्इ बायरस आन लगे है। यदि इनकौ इलाज नर्इ करो गओ तो जै साहित्य खौ हेंग करके सबरौ साहित्य खौ चाट जेहे। अपुन नै तो एंटीबाइरस अपने एगर धर लओ है ताकि इनके प्रभाव से बचत रये,लेकिन फिर भी कभऊ-कभऊ इनकी चपेट में सोर्इ आ जात है। इनकी मीठी और चापलूसी की बातन में आ जात है। सो भइयाहरौ जा लुकलक की बीमारी भौत खतरनाक है र्इसै अपने खौ बचावे राखने है।
                   
 -     राजीव नामदेव ''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)
         संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र..लेखक संघ
नर्इ चर्च के पीछे,षिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.) पिन कोड-472001
मोबाइल न.-9893520965

     Bloggs- rajeev namdeo rana lidhori. Blogspot.com



रविवार, 3 नवंबर 2013

राजीव नामदेव'राना लिधौरी के 'इंटरनेट पर उनके तीन ब्लागों पढे़

        अब 'राना लिधौरी की कविताएँ 'इंटरनेट पर उनके तीन ब्लागों में पढे़-

टीकमगढ़ म.प्र. की सुप्रसिद्ध साहितियक संस्था 'म.प्र.लेखक संघ की जिला इकार्इ टीकमगढ़ जिलाध्यक्ष एवं ख्याति प्राप्त कवि राजीव नामदेव 'राना लिधौरी की कविताएँ उनके चाहनेवाले अब इंटरनेट पर उनके ब्लाग पर भी पढ़ सकते है। इसके लिए गूगल पर राजीवरानालिधौरी डाट ब्लागस्पाट डाट काम (www.rajeevranalidhori.blogspot.com)  टाइप करे। राजीव नामदेव 'राना लिधौरी के  हास्य व्ंयग्य पढ़ने के लिए इंटरनेट पर उनके निम्न ब्लाग पढे़।  इसके लिए गूगल पर व्यंग्य संसार डाट ब्लागस्पाट डाट काम (www.vyangsansar.blogspot.com)  टाइप करे।
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी के  बुंदेली बोली में आलेख व रचनाएँ पढ़ने के लिए इंटरनेट पर उनके निम्न ब्लाग पढे़।  इसके लिए गूगल पर बुंदेलखण्डनालेज डाट ब्लागस्पाट डाट काम (www. bundelkhandknowlege. blogspot.com) टाइप करे।राजीव नामदेव राना लिधौरी 'फेशबुक पर भी उपलब्ध है 'फेशबुक पर उनके 330 से अधिक फालोवर है।
गौरतलब हो कि राजीव नामदेव 'राना लिधौरी' के ब्लाग कोे पढ़ने वाले पाठक भारत के साथ-साथ भारत के साथ-साथ अमेरिका,रूस, मलेशिया, जर्मनी, द.कोरिया, नीदरलैंड, बि्रटेन, सिवडजरलैंड, फ्र्रांस,यूक्रेन,साउदी अरव,ब्राजील,आदि देशो के पाठक है। नगर की सुप्रसिद्ध साहितियक संस्था 'म.प्र.लेखक संघ की जिला इकार्इ टीकमगढ़ द्वारा प्रकाशित जिले की एकमात्र साहितियक पत्रिका 'आकांक्षा को अब इंटरनेट पर ब्लाग में भी पढ़ा जा सकता है। इसके लिए गूगल पर  आकांक्षा टीकेजी डाट ब्लागस्पाट डाट काम (www.akankshatkg.blogspot.com)  टाइप करे। 'आकांक्षा के इंटरनेट संस्करण का संपादन राजीव नामदेव 'राना लिधौरी व विजय कुमार मेहरा ने संयुक्त रूप से किया है। गौरतलब हो कि मात्र दो माह से भी कम समय में अब तक 1000 पाठकों ने इंटरनेट पर 'आकांक्षा पत्रिका को पढ़ चुके है पाठकों में भारत के साथ-साथ अमेरिका, दुबर्इ, यूएर्इ, आस्ट्रलिया, पाकिस्तान, रूस़, आदि विदेशों के पाठक भी शामिल है।