बुन्देली व्यग्ंय-''लुकलुक की बीमारी
-राजीव नामदेव''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)
हमाये इतै कछु दिनन से नये-नये कवि पैदा भये पैला से वे कवितार्इ नर्इ करतते पर जब सै सरकार ने उनै रिडायर्ड करदऔ तबसै वे सठिया गये और 'सरतारौ बानिया का करे की कानात को अपनारये हते, सौ कोनऊ ने उनसे कै दर्इ कि कवि बन जाओ सौ उनने कर्इ कि कवि तो जन्मजात होत है ऐसे कैसे बन जात है? उनने कर्इ आजकाल तौ सबर्इ जने कवि बन जात है। वे ठलुआ तो हो गये हते सो उन्ने कोशिस करी तो कछु इतार्इ कि कछु उतार्इ की जोर-तोर के चार छ: कवितायें बना डारी और कवि बन गये बार सफेद हते, उन्ना सोर्इ सफेद पैर लये तना सी दाढ़ी घर लर्इ, लो बन गये कवि। अब उने झटटर्इ अपनौ नाव कवियन में करवै की लुकी लुकी भर्इ, जा एक भौत बुरर्इ नर्इ बीमारी पर गयी जौ उनखौ पीछो अबे लौ नर्इ छोर रर्इ। अब शहर में कितऊ भी कोनऊ साहितियक पिरोगराम या कवि सम्मेलन हुये जै साहब उतै जरूर पौच जेहे। उन्हें पैचानवे में कोनऊ परेशानी नर्इ होत है, काइसै कै जै उतर्इ मंच कै ऐंगरें ही लुकलुकात फिरत है। कछु नर्इ तो तनक -तनक देर में मंच पै पौच कै मइक ठीक करन लगत है ऐसे लगत जैसे जै पिछले जनम में माइक सुधारवे के स्पेशलिष्ट भये हुये।
एक बैर का भओ कि शहर में एक बुन्देली पै कवि सम्मेलन हतौ अब ये लुक-लुक साब तौ बुन्देली में तनकऊ नर्इ लिख पातते, सौ उनकीे इतै कविता पढवै की दार नर्इ गलने हती, पर का करै, मजबूरी हती सौ जै सबसे पैला की लाइन में जगां अगेज कै सबसे पैला कुर्सी पै धररये। अब साब कवि सम्मेलन चालू भओ, सो जो इनै लुकलुक की बीमारी हती ऊकौ कीरा गुलबुलान लगौ सो इनै कछु न सूजी, जै उतर्इ से एक पैरे से पैराओ भओ गजरा ढूंढ लाये और मंच पै चढ कै ऊ समय जौन कवि पढ़ रओ हतो उखौ पैरा दओ, और तारी बजान लगे जैसे कछु जग्ग जीत लओ हो,सौ कछु लोगन ने उनके देखादेखी सोर्इ तारी बजा दर्इ। अब इनकी लुकलुकी तनक कम भर्इ सो जै अपनी जागा पै आकै बैठ गयें। आदा घंटे बाद इनै फिरकै लुकलुकी उठी, सौ जै फिरकै कऊ से एक गजरा ढूंढ कै लाये और मंच पै जान लगे, सौ पछार्इ बैठे श्रोताओं में से कोनऊ ने जोर से कर्इ -जौ कौ बब्बा अय। जौ भार्इ लुकलुकात फिररऔ, सौ बगल बारे ने कर्इ सठिया गओ है दूसरे नै कर्इ इतर्इ कौ नओ-नओ कवि बनो है सौ आज र्इखौ पढवे नर्इ मिल रओ, सो फरफरात फिर रओ और गजरा डार -डार कै अपनौ मन भर रओ, एर्इ बहाने से मंच पे जावे की लुकलुकी शांत कररओ। एकाद बेर फोटो सोर्इ खिंच जात सौ जै ऊखौं मडवा कै अपने इतै घरे टांग लेत है और कत फिरत है कि हमने ऊके संगे कविता पडी हती वे तो हमाये मित्र है। अब फोटो देखवे वारे कौ का पतौ कि जा फोटो कैसे खिांची हती। जो बब्बा हर कवि सम्मेलन में जोर्इ नौटंकी करत है हम तौ कर्इ बेर देख चुके है। सबरै सुनवे वारे इन्हैं चीनन लगे है लगत है तुम नये आये हो? एर्इ से तुमै नर्इ मालूम।
इन साब की लुकलुक की बीमारी खौ देख के शहर भर के कवियन ने इनकौ नाव 'लुकलुक कवि धर दओ। अब इन मैं एक विदया तो जन्मजात हती सौ ऊकी दम पै और नैतन की चमचयार्इ करकै इतै उतै की बातें बानकै नेतन के हात पाव जोर कै कैसै भी पैसा ऐठ कै एकाध कवि गोष्ठी अपने घरे करा लर्इ और उन्हीं नेतन खौ शाल श्रीफल सै सम्मान करदओ। शहर भर कै नेतन खौ सम्मान करकै जै अफरै नइयाँ सौ अब उनखै चमचन खौ सोर्इ सम्मान करत जा रये। अब इतै जा सोसवे बारी बात है कि साहितियक गोष्ठी में नेतन कौ सम्मान करवै की का तुक है वे कुन अटल बिहारी है कि कवि है। जे तो साहित्य कौ 'हींग कौ घगा तो जानत नर्इया और सम्मानित हो रये,जै तो बोर्इ बात हो गर्इ कि मूरखन कै राज मैं 'गधा पजीरी खा रये, लेकिन का करै चमचयार्इ में जो सब तो करनै पडत है। अबे तक तो जा कानात सुनी ती कि 'मुसीबत में गधे को बाप बनालओ जात है पर अब तो पैसन के लाने जी चाये खौ कछु भी बनालो।
अबे तक तो साहित्यकार इन सबसे दूर रततै। साहित्यकारन खौ जो सब नोनो नर्इ लगत है,साहित्यकारन की तौ स्वाभिमान,इज्जत एवं प्रशंसा ही पूंजी रत है। साहित्यकार खौ मतलब होत है जो सबको हित करे वही साहित्यकार होत है जो नर्इ कि केवल अपनौ हित साध लओ। नेतन की चमचयार्इ और लुकलुक करवों अपुन साहित्यकारन कौ नोनो लर्इ लगत है पर का करै जमानौ सोर्इ बदल रओ है। झटटर्इ परसिधी पावे खौ जो शोर्टकट रास्तो है। कछुन ने र्इखौं अपना लओ है।
अब लुकलुक साब खौ दो तीन साल कवितार्इ करत भये हो गये सो उनने कवियन की कविता पढवे की नकल,मंच की अदाये सीख लर्इ वे अब कवियन में गिने जाने लगे और स्वयं खौ शहर खौ सबसे बड़ो कवि मानन लगे। वे अपने लुकलुकावे को कोनउ मौका हात से नर्इ जान देत है। शहर में जब कभउ कौनउ भी कवि सम्मेलन होत है और ऊ में कोनउ नओ कवि शहर में आवो तो वे एक डायरी लेके ऊखै इतै पौंच कै ऊखों नाव पतौ और मोबाइल नंबर जरूर लिख लेत है और उये जब तक पेरत रत है जब तक कि वौ इने अपने इते एक वेर नर्इ बुला लेत है। दौबारा उतै जावे की नौबत नर्इ आत है। वे जान जात है कि जै कितै बडे वारे है।
वे अब जब भी मंच पै जात है तो एक दो नर्इ से उनकी लुकलुकी नर्इ जात कम सेे कम छ:सात कविताये तो फटकार आत है संचालक महोदय इनसे बैठवै की बिनती करत-करत थक कै गम्म खाकै बैेठ जात। यदि जै कभऊ कोनउ गोष्ठी कौ सचांलन कर रये तौ फिर उनसे भगवान भी नर्इ बचा सकत है लुकलुक साब कि कछु कवितायें तो गोल्डन जुबली मना चुकी है फिर भी जै बडे शान से ऊ कविता खौ ऐसे सुनात जैसे पैली बेर सुना रये हो।
उनकी देखादेखी कछु कवियन खौ सोर्इ जा लुकलुक की बीमारी लगगर्इ है। सौ भइया इनर्इ जैसन लुकलुकन की लुकलुकी कम करवै के लाने जौ व्युंग्य लिखौ भओ है। अब का करे जैसै कंपूटर में बाइयरस आ जात है बैसे अब साहित्य में सोर्इ बायरस आन लगे है। यदि इनकौ इलाज नर्इ करो गओ तो जै साहित्य खौ हेंग करके सबरौ साहित्य खौ चाट जेहे। अपुन नै तो एंटीबाइरस अपने एगर धर लओ है ताकि इनके प्रभाव से बचत रये,लेकिन फिर भी कभऊ-कभऊ इनकी चपेट में सोर्इ आ जात है। इनकी मीठी और चापलूसी की बातन में आ जात है। सो भइयाहरौ जा लुकलक की बीमारी भौत खतरनाक है र्इसै अपने खौ बचावे राखने है।
- राजीव नामदेव ''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र..लेखक संघ
नर्इ चर्च के पीछे,षिवनगर कालोनी,
टीकमगढ़ (म.प्र.) पिन कोड-472001
मोबाइल न.-9893520965
-राजीव नामदेव''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)
हमाये इतै कछु दिनन से नये-नये कवि पैदा भये पैला से वे कवितार्इ नर्इ करतते पर जब सै सरकार ने उनै रिडायर्ड करदऔ तबसै वे सठिया गये और 'सरतारौ बानिया का करे की कानात को अपनारये हते, सौ कोनऊ ने उनसे कै दर्इ कि कवि बन जाओ सौ उनने कर्इ कि कवि तो जन्मजात होत है ऐसे कैसे बन जात है? उनने कर्इ आजकाल तौ सबर्इ जने कवि बन जात है। वे ठलुआ तो हो गये हते सो उन्ने कोशिस करी तो कछु इतार्इ कि कछु उतार्इ की जोर-तोर के चार छ: कवितायें बना डारी और कवि बन गये बार सफेद हते, उन्ना सोर्इ सफेद पैर लये तना सी दाढ़ी घर लर्इ, लो बन गये कवि। अब उने झटटर्इ अपनौ नाव कवियन में करवै की लुकी लुकी भर्इ, जा एक भौत बुरर्इ नर्इ बीमारी पर गयी जौ उनखौ पीछो अबे लौ नर्इ छोर रर्इ। अब शहर में कितऊ भी कोनऊ साहितियक पिरोगराम या कवि सम्मेलन हुये जै साहब उतै जरूर पौच जेहे। उन्हें पैचानवे में कोनऊ परेशानी नर्इ होत है, काइसै कै जै उतर्इ मंच कै ऐंगरें ही लुकलुकात फिरत है। कछु नर्इ तो तनक -तनक देर में मंच पै पौच कै मइक ठीक करन लगत है ऐसे लगत जैसे जै पिछले जनम में माइक सुधारवे के स्पेशलिष्ट भये हुये।
एक बैर का भओ कि शहर में एक बुन्देली पै कवि सम्मेलन हतौ अब ये लुक-लुक साब तौ बुन्देली में तनकऊ नर्इ लिख पातते, सौ उनकीे इतै कविता पढवै की दार नर्इ गलने हती, पर का करै, मजबूरी हती सौ जै सबसे पैला की लाइन में जगां अगेज कै सबसे पैला कुर्सी पै धररये। अब साब कवि सम्मेलन चालू भओ, सो जो इनै लुकलुक की बीमारी हती ऊकौ कीरा गुलबुलान लगौ सो इनै कछु न सूजी, जै उतर्इ से एक पैरे से पैराओ भओ गजरा ढूंढ लाये और मंच पै चढ कै ऊ समय जौन कवि पढ़ रओ हतो उखौ पैरा दओ, और तारी बजान लगे जैसे कछु जग्ग जीत लओ हो,सौ कछु लोगन ने उनके देखादेखी सोर्इ तारी बजा दर्इ। अब इनकी लुकलुकी तनक कम भर्इ सो जै अपनी जागा पै आकै बैठ गयें। आदा घंटे बाद इनै फिरकै लुकलुकी उठी, सौ जै फिरकै कऊ से एक गजरा ढूंढ कै लाये और मंच पै जान लगे, सौ पछार्इ बैठे श्रोताओं में से कोनऊ ने जोर से कर्इ -जौ कौ बब्बा अय। जौ भार्इ लुकलुकात फिररऔ, सौ बगल बारे ने कर्इ सठिया गओ है दूसरे नै कर्इ इतर्इ कौ नओ-नओ कवि बनो है सौ आज र्इखौ पढवे नर्इ मिल रओ, सो फरफरात फिर रओ और गजरा डार -डार कै अपनौ मन भर रओ, एर्इ बहाने से मंच पे जावे की लुकलुकी शांत कररओ। एकाद बेर फोटो सोर्इ खिंच जात सौ जै ऊखौं मडवा कै अपने इतै घरे टांग लेत है और कत फिरत है कि हमने ऊके संगे कविता पडी हती वे तो हमाये मित्र है। अब फोटो देखवे वारे कौ का पतौ कि जा फोटो कैसे खिांची हती। जो बब्बा हर कवि सम्मेलन में जोर्इ नौटंकी करत है हम तौ कर्इ बेर देख चुके है। सबरै सुनवे वारे इन्हैं चीनन लगे है लगत है तुम नये आये हो? एर्इ से तुमै नर्इ मालूम।
इन साब की लुकलुक की बीमारी खौ देख के शहर भर के कवियन ने इनकौ नाव 'लुकलुक कवि धर दओ। अब इन मैं एक विदया तो जन्मजात हती सौ ऊकी दम पै और नैतन की चमचयार्इ करकै इतै उतै की बातें बानकै नेतन के हात पाव जोर कै कैसै भी पैसा ऐठ कै एकाध कवि गोष्ठी अपने घरे करा लर्इ और उन्हीं नेतन खौ शाल श्रीफल सै सम्मान करदओ। शहर भर कै नेतन खौ सम्मान करकै जै अफरै नइयाँ सौ अब उनखै चमचन खौ सोर्इ सम्मान करत जा रये। अब इतै जा सोसवे बारी बात है कि साहितियक गोष्ठी में नेतन कौ सम्मान करवै की का तुक है वे कुन अटल बिहारी है कि कवि है। जे तो साहित्य कौ 'हींग कौ घगा तो जानत नर्इया और सम्मानित हो रये,जै तो बोर्इ बात हो गर्इ कि मूरखन कै राज मैं 'गधा पजीरी खा रये, लेकिन का करै चमचयार्इ में जो सब तो करनै पडत है। अबे तक तो जा कानात सुनी ती कि 'मुसीबत में गधे को बाप बनालओ जात है पर अब तो पैसन के लाने जी चाये खौ कछु भी बनालो।
अबे तक तो साहित्यकार इन सबसे दूर रततै। साहित्यकारन खौ जो सब नोनो नर्इ लगत है,साहित्यकारन की तौ स्वाभिमान,इज्जत एवं प्रशंसा ही पूंजी रत है। साहित्यकार खौ मतलब होत है जो सबको हित करे वही साहित्यकार होत है जो नर्इ कि केवल अपनौ हित साध लओ। नेतन की चमचयार्इ और लुकलुक करवों अपुन साहित्यकारन कौ नोनो लर्इ लगत है पर का करै जमानौ सोर्इ बदल रओ है। झटटर्इ परसिधी पावे खौ जो शोर्टकट रास्तो है। कछुन ने र्इखौं अपना लओ है।
अब लुकलुक साब खौ दो तीन साल कवितार्इ करत भये हो गये सो उनने कवियन की कविता पढवे की नकल,मंच की अदाये सीख लर्इ वे अब कवियन में गिने जाने लगे और स्वयं खौ शहर खौ सबसे बड़ो कवि मानन लगे। वे अपने लुकलुकावे को कोनउ मौका हात से नर्इ जान देत है। शहर में जब कभउ कौनउ भी कवि सम्मेलन होत है और ऊ में कोनउ नओ कवि शहर में आवो तो वे एक डायरी लेके ऊखै इतै पौंच कै ऊखों नाव पतौ और मोबाइल नंबर जरूर लिख लेत है और उये जब तक पेरत रत है जब तक कि वौ इने अपने इते एक वेर नर्इ बुला लेत है। दौबारा उतै जावे की नौबत नर्इ आत है। वे जान जात है कि जै कितै बडे वारे है।
वे अब जब भी मंच पै जात है तो एक दो नर्इ से उनकी लुकलुकी नर्इ जात कम सेे कम छ:सात कविताये तो फटकार आत है संचालक महोदय इनसे बैठवै की बिनती करत-करत थक कै गम्म खाकै बैेठ जात। यदि जै कभऊ कोनउ गोष्ठी कौ सचांलन कर रये तौ फिर उनसे भगवान भी नर्इ बचा सकत है लुकलुक साब कि कछु कवितायें तो गोल्डन जुबली मना चुकी है फिर भी जै बडे शान से ऊ कविता खौ ऐसे सुनात जैसे पैली बेर सुना रये हो।
उनकी देखादेखी कछु कवियन खौ सोर्इ जा लुकलुक की बीमारी लगगर्इ है। सौ भइया इनर्इ जैसन लुकलुकन की लुकलुकी कम करवै के लाने जौ व्युंग्य लिखौ भओ है। अब का करे जैसै कंपूटर में बाइयरस आ जात है बैसे अब साहित्य में सोर्इ बायरस आन लगे है। यदि इनकौ इलाज नर्इ करो गओ तो जै साहित्य खौ हेंग करके सबरौ साहित्य खौ चाट जेहे। अपुन नै तो एंटीबाइरस अपने एगर धर लओ है ताकि इनके प्रभाव से बचत रये,लेकिन फिर भी कभऊ-कभऊ इनकी चपेट में सोर्इ आ जात है। इनकी मीठी और चापलूसी की बातन में आ जात है। सो भइयाहरौ जा लुकलक की बीमारी भौत खतरनाक है र्इसै अपने खौ बचावे राखने है।
- राजीव नामदेव ''राना लिधौरी,टीकमगढ़,(म.प्र.)
संपादक 'आकांक्षा पत्रिका
अध्यक्ष-म.प्र..लेखक संघ
नर्इ चर्च के पीछे,षिवनगर कालोनी,
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